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________________ अष्टम अध्याय "अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध भारतवर्ष में ऐसा समय कभी नहीं आया जबकि सम्पूर्ण देश का शासन एक ही राजा के अधीन दीर्घकाल तक रहा हो । यद्यपि अशोक जैसे महान पराक्रमी शासन हुए, परन्तु उनका भी साम्राज्य स्थायी रूप धारण नहीं कर सका। इसका मूल कारण यातायात की असविधाएँ थीं। इन असुविधाओं के कारण ही राजा सुदूर प्रान्तों पर यथोचित नियंत्रण नहीं रख सकते थे। इसका तात्पर्य यह हुआ कि ज्यों ही केन्द्रीय शक्ति का ह्रास होता गया, वे सुदूरवर्ती प्रान्त केन्द्रीय नियंत्रण से स्वतंत्र होते गये, और एक स्वतंत्र राज्य का रूप धारण करते गये । केन्द्रीय सत्ता की शिथिलता का दूसरा कारण विजेताओं की परम्परागत नीति भी थी। जैन मान्यतानुसार प्राचीन काल से ही शक्तिशाली एवं महत्वाकाँक्षी राजाओं का आदर्श चक्रवर्ती राजा बनने का रहा है। चक्रवर्ती अर्थात् सार्वभौम शासक वह होता है जो समस्त देश (छः खण्ड) पर शासन करता है । आचार्य कौटिल्य ने चक्रवर्ती राजा की परिभाषा देते हुए लिखा है कि चक्रवर्ती वह है जिसकी सीमा का विस्तार हिमालय से लेकर दक्षिण समुद्र तक का उत्तरी क्षेत्र एवं पूर्व पश्चिम एक हजार योजन व्याप्त है।' इस आदर्श का परिणाम यह होता था कि देश में निरन्तर युद्ध होता रहता था, क्योंकि प्रत्येक शासक चक्रवती बनने का प्रयास करता रहता था। तत्कालीन भारत का अन्य देशों से भी सम्बन्ध रहा । यहां तक कि उत्तर वैदिक काल में ही भारत का मिस्र, सीरिया, ईरान, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो, सिंगापुर, मारीशस तथा लंका आदि देशों से सम्बन्ध १. कौटिल्य अर्थशास्त्र ९/१, पृ० ५५६.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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