________________
ग्रन्थिभेदक और तस्कर नाम के चोरों का उल्लेख है।' अन्यत्र आक्रान्त, प्राकृतिक, ग्रामस्तेन, देशस्तेन, अन्तरस्तेन, अध्वानस्तेन और खेतों को खनन करने वाले चोरों का उल्लेख किया गया है। जैन मान्यतानुसार, प्राचीन समय में चोर बड़े साहसी और निर्भीक होते, तथा जो भी सामने आता, उसे मार डालते । चोर राजा के अपकारी, जंगल, गांव, नगर, पथ और गृह आदि के विध्वंसकर्ता, जहाजों को लूट लेने वाले, यात्रियों का धन अपहरण करने वाले, जुआरी, जबर्दस्ती कर वसूल करने वाले, स्त्री के वेश में चोरी करने वाले, सेंध लगाने वाले, गठकतरे, गाय-घोड़ा, दासदासी, बालक और साध्वियों का अपहरण करने वाले तथा सार्थ को मार डालने वाले हुआ करते थे। चोर विकाल में गमन करते, किंचित् दग्ध मृत कलेवर, अथवा जंगली जानवरों का मांस या कन्दमूल भक्षण किया करते। चोरी करने वालों को ही नहीं, बल्कि चोरी की सलाह देने वाले, चोरी का भेद जानने वाले, चुराई हुई वस्तु को कम मूल्य पर खरीदने वाले, चोरों को अन्न-दान या और किसी भी प्रकार का आश्रय देने वाले को भी चोर कहा है। इसके अलावा चोर में विश्वास की भावना पैदा कर, उसकी कुशल-क्षेम पूछकर, उसे संकेत देकर, न पकड़वाने में उसकी मदद कर, जिस मार्ग से चोर गया हो उस मार्ग का उलटा मार्ग बताकर, तथा उसे स्थान, आसन, भोजन, तेल-जल, अग्नि और रस्सी आदि प्रदानकर चोर का हौसला बढ़ाया जाता था, ऐसा करने वालों को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता था, तथा उन्हें भी दण्ड का भागी बनना पड़ता था।
(II) चोरी के प्रकार :
सेंध लगाना
प्राचीन ग्रंथों में सेंध लगाने के विविध प्रकार बतलाये गये हैं। कपिशीर्ष (कंगूरा), कलश, नन्दावर्त, कमल, मनुष्य और श्रीवत्स के
१. उत्तराध्ययन ६. २. निशीथभाष्य २१, ३६५० । ३. ज्ञाताधर्म कथांग १८, १० ५५५. ४, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ०७२-७३....
....