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(१५३ ) जैन मान्यतानुसार प्राचीन समय में किसी भी प्रकार की दण्डव्यवस्था नहीं थी। सभी लोग मिल जुलकर जीवन-यापन करते थे। उस समय किसी भी प्रकार की उच्छृखलता नहीं थी। लेकिन धीरे-धीरे जब कुलकर-व्यवस्था का प्रारम्भ हुआ उस समय उच्छृखलता के बीज वपन होने लगे जिसके फलस्वरूप दण्ड-नीति का प्रारम्भ हुआ। यह कलकरव्यवस्था भगवान ऋषभदेव से पूर्व थी उस समय यौगलिक काल चल रहा था। जैन मान्यतानुसार कुलकरों की संख्या में मतमेद बतलाया गया है। किसी मत के अनुसार ७ कुलकरों का उल्लेख है और किसी मत के अनुसार १५ या १४ कुलकरों का उल्लेख आता है जिनके बारे में विस्तृत जानकारी हम पूर्व में दे चुके हैं। इस प्रकार कुलकर व्यवस्था के अन्तर्गत तीन प्रकार की दण्डनीतियां प्रचलित थीं। जो कि निम्नलिखित हैं :-(१) हाकार दण्डनीति, (२) माकार दण्डनीति, (३) धिक्कार दण्डनीति ।
(१) “हाकार" दण्डनीति :-इस दण्डनीति का प्रारम्भ पाँच कुलकरों के समय में हुआ था । जहाँ सात कुलकरों का उल्लेख है वहां बताया गथा है कि प्रथम दो कुलकरों के समय इस नीति का विकास हआ था। इस समय के लोग बहुत भोले थे। केवल "हा" कह देने मात्र से ही समझ जाते थे और आगे अपराध नहीं करते थे।
(२) "माकार" दण्डनीति :-जब "हाकार” दण्डनीति का लोग उल्लंघन करने लगे तब छठे से दसवें (जहाँ सात का उल्लेख है उसके अनूसार तीसरे, चौथे) कुलकर के समय में "माकार" दण्डनीति का प्रादुर्भाव हुआ। इस नीति के अनुसार “मा” (मत) कह देने मात्र से ही अपराधी दण्डित रमझा जाता था। इस समय यौगलिक लोग पूर्व की अपेक्षा कुछ चालाक हो गये थे।
(३) "धिक्कार" दण्डनीति :-जब "माकार" दण्डनीति का भी उल्लंघन होने लगा तब अन्तिम के पाँच अथवा अन्तिम के तीन कलकरों के समय में "धिक्कार” दण्डनीति चलती रही। इस नीति के अनुसार अपराधी को "धिक" कह कर दण्डित किया जाता था। इस समय प्रजा के
१. जम्बूद्वीप प्राप्ति वक्ष ६, पृ० ११५-११८
आ० चू० पृ० १३० आ. नि. ५१ महा पु० पृ० ६५