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( १४२) दी। और स्वयं भी युद्ध के लिए तैयार होने लगे । चतुरंगिणी सेना इकट्ठी होने लगी। अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ आ पहुंची। ध्यान करते ही नौ निधियाँ तथा चौदह रत्न इकट्ठे हो गये।
जैसे ही भरत राजा ने अभियान के लिए प्रस्थान किया, वैसे ही बाहुबलि के दूतों ने उसे खबर दी कि महाराज ! तैयार होकर शीघ्र निकलिये । प्रतिपक्ष समुद्र की भाँति दीख पड़ रहा है। यह सुन कर पोदनपुर नरेश बाहुबलि भी रोषपूर्वक तैयारी करने लगे। पटु और पट्ट बज उठे, शंख भी फक दिये गये। असंख्य ध्वज-दण्ड और छत्र उठने लगे। कलकल की ध्वनि होने लगी। हाथों के प्रहार से वाहन चलने लगे। बाहबलि भी निकल पड़ा। उसकी एक ही सेना ने भरत की सात अक्षौहिणी सेना को क्षुब्ध कर दिया । भरत ओर बाहुबलि की सेनाएँ एक-दूसरे के सम्मुख आ पहुंची। आमने-सामने ध्वज के आगे ध्वज और अश्व के आगे अश्व । महाराजाओं के आगे महाराजा, योद्धाओं के आगे योद्धा, महारथों के आगे महारथ खड़े कर दिये गये।
भरत और बाहुबलि की सेनाओं के भिड़ते ही कलकल शब्द बढ़ने लगा। रथ हांके जाने लगे, हाथी उकसाये जाने लगे। एक-दूसरे पर लगातार हमले होने लगे । पैर छिन्न-भिन्न होने लगे। एक-दूसरे पर लगातार हमले होने लगे। रथ की धरें टूटने लगीं। मंडस्थल विदीर्ण होने लगे।
और छाती फटने लगीं। भुजाएँ कट कर गिरने लगीं, सिर लोटने लगे, छिन्न-भिन्न रुण्ड-मण्ड नाच रहे थे। हाथियों के दांतों के प्रहार से छिन्न होकर योद्धा हट रहे थे । प्रतिहत होकर गजसेना पृथ्वी पर पड़ने लगी। ध्वज पट खंडित होकर उड़ रहे थे । बड़े-बड़े रथ चकनाचूर हो गये। बड़ेबड़े अश्व नष्ट होकर लोटपोट हो गये । रक्तरंजित तीरों से दोनों ही सेनाएं भयङ्कर हो उठीं।
इस तरह नष्ट प्रायः दोनों सेनाओं को भिड़ते और धरती पर गिरते देखकर मंत्रियों ने निवेदन किया। "अभागे सैनिकों के संहार से क्या फायदा ? अच्छा हो यदि आप दोनों ही आपस में युद्ध कर लें।" त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित में इस प्रकार का उल्लेख है कि भरत और बाहुबलि
१. पउम चरिय पृ० ६७ महा पु० भाग-२. पृ० २०३.