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________________ प्रथम अध्याय भारत में राजनीति शास्त्र की प्राचीन परम्परा प्राचीन भारत में राजनीति शास्त्र को अनेक नामों से सम्बोधित किया जाता था । राजधर्म, राज्यशास्त्र, दण्डनीति, नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि । 'राजधर्म' अथवा 'राज्यशास्त्र' नाम इसलिए पड़ा क्योंकि उस समय भारत मे बहुधा नृपतन्त्र या राजतन्त्र प्रचलित था । महाभारत के शान्तिपर्व मे इस विषय का विवेचन राजधर्म के नाम से ही किया गया है । " दण्डनीति" यह नाम देने का तात्पर्य यह है कि भारतीय राजनीतिज्ञ राजसत्ता का अन्तिम आधार दण्ड या बल को ही स्वीकार करते थे । उनकी मान्यता थी कि यदि राजसत्ता अपराधियों को दण्ड नहीं देगी, तो समाज मे मत्स्यन्याय या अराजकता शुरू हो जायेगी । दण्ड के भय से ही लोग न्याय पथ का अनुकरण करते हैं । जब सब सोते हैं तब " दण्ड" ही रक्षण करता है । संक्षेपतः दण्ड ही धर्म है, ऐसी भारतीय राज्यशास्त्रियों की धारणा थी । आरम्भ में जो ग्रन्थ राजनीतिक सिद्धान्तों अथवा शासन कायों से सम्बन्ध रखते थे, वे दण्डनीति कहलाते थे । दण्डनीति का अर्थ है शासन सम्बन्धी सिद्धान्त । प्राचीन शब्द १ दण्ड : शस्ति प्रजाः सर्वा दण्ड एवाभिरक्षति । दण्डः सुप्तेषु जागर्ति दण्डं धर्म विदुर्बुधाः ॥ 1 मनुस्मृति टीकाकार, हरगोविन्द शास्त्री, वाराणसी, चौखम्बा संस्कृत सीरीज आफिस, १९६५, ७ / १८ । २. "काशीप्रसाद जायसवाल " हिन्दू राज्य -तन्त्र - पहला- खण्ड, प्रयाग : इण्डियन प्रेस लिमिटेड, १९८४, पृ० ५ ।
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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