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________________ ...(१२६) करों के प्रकार: जैन सूत्रों में अठारह प्रकार के करों का उल्लेख है। (१) गोकर (गाय बेचकर दिया जाने वाला कर), महिषकर, उष्ट्रकर, पशुकर, छगलोकर (बकरा), तृणकर, पलालकर (पुवाल), बुसकर (भूसा), काष्ठकर, अङ्गारकर, सीताकर (हल पर लिया जाने वाला कर) उंबर कर' (देहली अथवा प्रत्येक घर से लिया जाने वाला कर), जंधाकर (अथवा जंगाकरः चरागाह पर लिया जाने वाला कर): बलीवर्दकर (बैल), घटकर, चर्मकर, चुल्लगकर (भोजन) और अपनी इच्छा से दिया जाने वाला कर। ये कर गाँवों में ही वसूल किये जाते थे और नगर इनसे मुक्त रहते। कर वसूल करने वाले कर्मचारी शल्कपाल (गोमियासुकिया) कहे जाते थे। पुत्रोत्पत्ति, राज्याभिषेक आदि शुभ अवसरों पर कर माफ कर दिया जाता था। अर्थशास्त्र में बाईस प्रकार के राजकर बताये गये हैं।' राजकोष को समद्ध बनाने के अन्य उपाय : राजकोष को समृद्ध बनाने के और भी उपाय थे। यदि कोई व्यक्ति कोई कार्य करवाना चाहता तो उससे पूर्व वह राजा की मंजूरी लेने के लिए मूल्यवान उपहार लेकर राजा के पास जाता था। राजगृह का नन्द नामक मणियार श्रेष्ठी नगर में एक पुष्करिणी खुदवाना चाहता था। इसलिए वह अपने मित्रों से परिवेष्ठित हो कोई मूल्यवान उपहार लेकर राजा श्रेणिक के पास पहुंचा और पुष्करिणी खुदवाने की आज्ञा (अनुमति) प्राप्त की। चम्पानगरी के सुवर्णकार कुमारनन्दि ने पंचशैल द्वीप के लिए प्रस्थान करने की घोषणा करने से पूर्व राजा की अनुमति प्राप्त करना आवश्यक समझा। इसलिए सुवर्ण आदि बहुमूल्य उपहार लेकर वह १. बृहत्कल्प भाष्य टीका, मलयगिरि और हेमकीति ; पुण्यविजय, भावनगर, आत्मा नंद जैन सभा ; १९३३-३८, उ० ४७७०. २. वही १, १०८६ नत्थेत्थ करो नगर ३. कौटिल्य अर्थशास्त्र २/६ पृ० ८६. ४, हाताधर्मकयांगसूत्र आ० १३ पृ० ३८४,
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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