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- (२) वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणमिकी नामक चार प्रकार की बुद्धियों में निष्णात था।
अमात्य (मंत्री) राजा को समय-समय पर अच्छे-अच्छे कार्यों के लिए सलाह दिया करता था। राजा श्रेणिक तो अभयकुमार से अपने अनेक कार्यों और गुप्त रहस्यों के बारे में मन्त्रणा किया करते थे। अभयकुमार स्वयं ही राज्य (शासन), राष्ट्र (देश), कोश, कोठार (अन्न भण्डार), बल (सेना), वाहन (सवारी के योग्य हाथी, अश्व आदि), पुर (नगर) और अन्तःपुर की देखभाल करता था। मंत्री का पद इतना महत्त्वपूर्ण होता था कि वह अयोग्य राजा को पदच्युत कर उसके स्थान पर दूसरे राजा को राजगद्दी पर बैठा देता था।
जिस प्रकार व्यवहार-नीति के कार्यों में सलाह करने के लिए मंत्री की आवश्यकता होती, उसी प्रकार धार्मिक कार्यों में सलाह लेने के लिये पुरोहितों का पद भी बड़ा सम्मानजनक होता था। जैन पुराणों के अनुसार राज्य में पुरोहित का महत्त्वपूर्ण स्थान होता था। राज्य के रक्षार्थ पुरोहित की नियुक्ति परमावश्यक थी। पुरोहित राजा को राज्य की भलाई के लिए परामर्श देता था और अनिष्ट कार्यों के निवारणार्थ योग क्षेम करता था। पुरोहितों को सकल.जनों से सम्मानित धर्म-शास्त्र का पंडित, लोकव्यवहार में कुशल नीतिवान, वाग्मी, अल्पारम्भ-परिग्रहवाला तथा तंत्र-मंत्र आदि का वेत्ता होना चाहिए ।' अर्थशास्त्र के अनुसार पुरोहित को शास्त्र प्रतिपादित विद्याओं से युक्त, उन्नतकुल, शीलवान, सभी वेदों और व्याकरणादि वेद्वाङ्गों के ज्ञाता, ज्योतिषशास्त्र, शकुनशास्त्र
१. ज्ञाताधर्मकथा अ० १ पृ० ८. २. वही ३. महा पु० ३७/१७५ ४. वही ५. वही ५/७ ६. मिनक यादव : समराइच्चकहा एवं सांस्कृतिक अध्ययन, वाराणसी : भारती
प्रकाशनः १९७७, पृ० ६१.