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________________ (८७) छोड़ दिया जाता था, तथा सभी नागरिकों को करमुक्त कर दिया जाता था। रामायणकालीन राज्याभिषेक प्राणाली में राज्याभिषेक का सारा प्रबन्ध राजपुरोहितों के हाथ में रहता था। हवन, अभिषेक, तथा अन्य कार्यों के लिए आवश्यक सामग्री का पहले ही प्रबन्ध कर लिया जाता था। स्वस्ति वाचन करने वाले ब्राह्मणों के लिए आसन, दक्षिणा आदि की व्यवस्था रहती थी। अभिषेक से एक दिन पूर्व राजकुमार तथा उसकी पत्नी को उपवास रहता था, और वह ब्रह्मचर्य पूर्वक भगवान नारायण की पूजा और हवन करते थे। राज्याभिषेक के दिन प्रातः काल में ब्राह्मणों को मंदिरों या सार्वजनिक स्थानों पर दही, दूध, घी मिश्रित भोजन कराया जाता था, तथा प्रचुर मात्रा में दान, दक्षिणा दी जाती थी। नगर में चारों ओर ध्वजा, पताकाएँ फहरायी जाती थीं। सभा के सदस्य, प्रमुख व्यापारी, नागरिक, संघों के प्रधान, सामन्त राजा, मंत्रिगण, सैनिक, अधिकारी तथा राजकीय कर्मचारी यह सब संस्कार प्रारम्भ होते ही राजप्रसाद में आकर अपना आसन ग्रहण कर लेते थे। अभिषेक संस्कार प्रासाद की अग्निशाला में सम्पन्न होता था। पहले द्विजगण स्वस्ति वचन पूर्वक सपत्नीक राजकुमार को आशीर्वाद प्रदान करते, फिर वे दोनों हवन करते, तत्पश्चात् वह भद्रासन पर बैठते । फिर ब्राह्मण व ऋत्विज उनका मन्त्रोच्चारण पूर्वक पवित्र जल से अभिषेक करते, पश्चात कन्याएँ, मंत्री, सैनिक अधिकारी और वैश्य लोग उनका अभिषेक करते थे। इसके बाद राजकुमार नवीन वस्त्र धारण करता, चन्दन लगाता और पत्नी सहित रत्नों से सुशोभित सुवर्णमय सभाभवन में आकर दर्शन देता था। फिर उसको समारोह पूर्वक राजपद पर प्रतिष्ठित किया जाता था। सिंहासन पर बैठने के पश्चात् सिर पर रत्नमय किरीट रखा जाता और श्वेत छत्र ताना जाता और चमर ढुलाये जाते थे। इस अवसर पर सामंत लोग विविध उपहारादि भेंट करते थे। राजा भी उपस्थित लोगों को पुरस्कार आदि देते थे। तत्पश्चात् नवनिर्मित राजा को पुष्परथ पर सवार करके नगर में जुलूस निकाला जाता था। १. रामायणकालीन समाज पृ० २६४. २. रामायण कालीन समाज पृ० ३६५.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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