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________________ मांडवगढकामन्त्री ३५ पास पहुंचा और नमस्कार करके उ. चित आसन पर बैठगया । यद्यपि राजासे मिलने में मंत्रीको बमी देर । लगी तो नी राजा नाराज न होकर र खुश होकर कहने लगा कितुम्हारी प्रनु नक्ति देखकर मुजे अत्यन्त थानन्द हुवा। ___ यह सब पुन्य का ही प्रजाव है शास्त्रमें जी कहा है कि प्रीतिपात्र स्त्रीका, चतुर मित्रका, निर्लोनो सेवकका, और निरन्तर प्रसन्न रहे ऐसे स्वामीका मिलना विना पुण्योदय के । नहीं हो सक्ता है । अब राजा तथा 3 * मंत्री विचार करने लगे कि शत्रुनेजो में * चढाई की है उसका मुकाबला करना है या संधि करना इस बात का निर्णय
SR No.032336
Book TitleMandavgadh Ka Mantri Pethad Kumar Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansvijay
PublisherHansvijay Jain Free Library
Publication Year1923
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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