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________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • के परम गंतव्य को, परंतु उसकी यह पावनकारी साधनाभूमि रह गई-अनेकों को जगाने, अपने आपको अपने से जोड़ने ..... ! उस परम योगी की लोकोत्तर आत्म-साधना का साक्षी यह आश्रम पड़ा-पड़ा अपनी करवटें बदल रहा है और उसकी पराभक्तिवान, परम वात्सल्यमयी, परम करुणामयी आत्मज्ञा अधिष्ठात्री पूज्य माताजी की पावन निश्रा में बुला रहा है, चिरकाल का बुलावा दे रहा है-बिना किसी भेद के, सभी सच्चे खोजी आत्मार्थी साधकों-बालकों को : अपना भक्ति-कर्तव्य-आत्म-कर्तव्य साधने, 'स्वयं' को खोजने, 'स्व' के साथ 'सर्व' का आत्म-साक्षात्कार पाने .... !! सम्मतियाँ-I श्रीमद् राजचन्द्रजीने महात्मा गांधी को पंचाणुव्रत दिलवाए थे और उसी के बाद गांधीजी की माता ने गांधीजी को विदेश जाने की अनुमति दी थी। इसके उपरांत भी गांधीजी जब अफ्रिका में थे तो उनका संपर्क श्रीमद् राजचन्द्रजी से बना हुआ था । इसमें कोई भी शंका की बात नहीं है श्रीमद् राजचन्द्रजी की साधना अनुपम थी और उनका व्यक्तित्व भी असाधारण था और तभी गांधीजी जैसे साधक सत्याग्रही पर वे प्रभाव डाल सके थे । और प्रभाव भी वैसा जिसके द्वारा गांधीजी विश्व में सत्य और अहिंसा के महान साधक के रूप में याद किये जायेंगे। ___प्रो. प्रतापकुमार टोलिया से हमारी मुलाकात लगभग २० वर्ष पूर्व राजगृह में हुई थी और वे मेर साथ भी दो दिन रहे थे । संगीत के माध्यम से उन्होंने जो साधना पथ चुना है और साधारण लोगों के बीच बैठकर प्रभावशाली ढंग से पंथप्रदर्शन देते हैं, उसे मैं राजगृही में स्वयं देख चुका हूँ। स्वयं भी नित्य सुबह-शाम ध्यान करते और उस समय उनकी मुखाकृति सचमुच ही एक योगी जैसी मैंने देखी थी ! यह एक आश्चर्य की बात नहीं कि इन पर भी श्रीमद् राजचन्द्रजी के आश्रम एवं उनके उपदेशों का पर्याप्त रूप में प्रभाव पड़ा है और वे श्रीमद् राजचन्द्रजी के उपदेशों को टेप तथा ग्रामोफोन रिकार्डो के द्वारा बड़े अच्छे ढंग से प्रचारित एवं प्रसारित कर रहे हैं । उनके द्वारा लिखी गई लघु पुस्तिका "दक्षिणापथ की साधनायात्रा" १४ वर्ष पूर्व श्रीमद् राजचन्द्रजी के आश्रम, हम्पी के प्रथमदर्शन के उपरांत उन्होंने गुजराती भाषा में लिखी थी। अब उसका हिन्दी अनुवाद उनकी सुयोग्य सुपुत्री कु. पारुल ने बहुत परिश्रमपूर्वक और सुन्दर ढंग से किया है। इस लघु पुस्तिका से श्रीमद् राजचन्द्रजी के उपदेश तथा उनके प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होते हैं और साधक को श्रीमद् राजचन्द्रजी का निम्न मूलमंत्र हृदय पट पर अंकित हो जाता है - "जिसने आत्मा को जाना, उसने सब को जाना ।" "जे एगं जाणई, से सव्वं जाणई - !" मैं प्रो. प्रतापकुमार टोलिया को और उनकी सुयोग्य सुपुत्री कुमारी पारुल को इस प्रति के लिये बधाई देता हूँ। सुबोधकुमार जैन, आरा ("The Jaina Antiquary : श्री जैन सिद्धांत भास्कर" Vol. 38, No. 2, Dec. 1986) (79)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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