SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा . वह शायद आत्मध्यान में, मस्ती में लीन है । सामुदायिक ध्यान-भक्ति के समय वह भी ध्यानस्थ होकर बैठ जाता है एवं घंटों उसी मुद्रा में रहता है। उसके इन लक्षणों से सब को यही प्रतीति हुई है कि वह निश्चय ही पूर्व का कोई भ्रष्ट योगी साधु था एवं यहीं अब अपना निश्चित जीवन-काल व्यतीत कर रहा है। __ आत्माराम की एक अजीब आदत है, बल्कि एक ऐसी समस्या है, एक ऐसी संवेदन पूर्ण संस्कारजनित चेष्टा है कि आश्रम में जब भी कोई अजैन व्यक्ति या साधक आता है तब वह उन्हें पहचान लेता है और उसके कपड़े पकड़ कर खड़ा रहता है । वह न उसे काटता है और न किसी तरह से हानि पहुंचाता है, परन्तु जब तक कोई आश्रमवासी नहीं आता, तब तक उसे हटने नहीं देता । "बड़े समूह में से भी वह जैन-अजैन में भेद कैसे देख पाता है ?" यह एक ऐसा रहस्य है, जो सबके लिए आश्चर्य का विषय बन गया है। कारण ढूँढ़ने पर पता चलता है कि पूर्व-जन्म में उसकी साधना में कई अजैनों ने कई प्रकार की बाधाएं डालीं थीं, अतः उसका वर्तन एसा हो गया है। कुछ भी हो, उसकी 'परखकर पकड़ लेने की चेष्टा' उसकी संस्कार-शक्ति की, एवं उसकी 'काटने की या हानि न करने की वृत्ति एवं जागृति' योगी दशा की प्रतीति कराती है। बाह्य रूप चाहे कोई भी हो, एक जागृत आत्मा के संस्कार कभी नहीं बदलते । इससे यह भी सूचित होता है कि उसकी अब तक की साधना निरर्थक नहीं गई । साधना में देह का नहीं, बल्कि अंतर की स्थिति का महत्त्व होता है- यह उसके नाम (आत्माराम) एवं इस भूमि पर उसके साधक रूप में रहने से विदित होता है।' देवों की भी पूज्य माताजी : इनकी साधना सबसे भिन्न है- एक ऊँचे धरातल पर स्थित है । भक्ति के समय इसका प्रत्यक्ष परिचय हर कोई प्राप्त करता है। __पूर्णिमा की रात है । दूर-दूर से आये यात्रिक एवं स्थायी साधक गुफा-मंदिर में इकट्ठे हुए हैं । एक तरफ माताएँ एवं दूसरी ओर पुरुषों से गुफा-मन्दिर भर गया है। एक तरफ है खेंगारबापा और दूसरी तरफ आत्माराम चौकीदार के-से अचल भक्त । भद्रमुनिजी अंतर्गुफा में हैं, परंतु जैसेजैसे भक्ति का रंग चढ़ने लगता है, वे भी चैत्यालय एवं श्रीमद् राजचंद्रजी की प्रतिमा के पास आकर बैठते हैं और देहभान भुलानेवाली भक्ति में सम्मिलित होते हैं। मंद वाद्यस्वरों के साथ भक्ति की मस्ती बढ़ने लगती है... बारह-एक बजे तक वह अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच जाती है । गुफामंदिर पूरे समूह के घोष से गूंज उठता है : “सहजात्म स्वरूप परम गुरु।" देह से भिन्न केवल चैतन्य का ज्ञान करानेवाली, आत्मा-परमात्मा की एकता का दर्शन कराने वाली आत्माराम की अंतर्दशा के विषय में बाद में स्वयं पू. गुरुदेवने अपने दि. 28.2.70 के पत्र में इस लेखक को लिखा था : "आत्माराम को खानपान के विषय में, कुछ अधिक वैराग्य प्रवर्तित होता होगा ऐसा प्रतीत होता है।" बाद में कई वर्षों के पश्चात् आत्मारामने, पू. माताजी की पावन उपस्थिति में परमकृपाळुदेव के चित्रपट-सन्मुख, पेड़ के नीचे चल रही तीन दिन की समूहधून के दौरान "सहजात्मस्वरुप परमगुरु" में लीन होकर, एक दृष्टांत रूप देहत्याग कर समाधिमरण प्राप्त किया । (64)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy