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________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा . | प्रकरण-७ Chapter-7 | जैन योग अ-योग की समग्रसिद्धि का अनुभवमार्ग उस मार्ग के वर्तमान के एक प्रयोगवीर परमयोगी (अ.मा. जैन साहित्य समारोह : म.जै.वि. भावनगर सत्र में गुजराती में प्रस्तुत शोधपत्र) नमस्कार मंत्र और ध्यानयोग : ॥ नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्व साहूणं । एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलम् ॥ ___"पंच परमगुरुओं के शुद्धात्मध्यानमय यह नमस्कार महामंत्र सिद्ध होने पर सकलध्यान सिद्ध होते हैं, जो कर्मक्षय और मोक्ष प्रदान करते हैं । ये चार ध्यान हैं - पदस्थ, पिंडस्थ, रूपस्थ और रूपातीत । समस्त द्वादशांगरूप श्री जिनप्रवचन का सार है सुनिर्मल ऐसा ध्यानयोग आर्त्त-रौद्र-धर्म-शुक्ल के चार भेदों में से अंतिम दो उपादेय ऐसे ध्यान और मित्रा-तारा-बलादीप्रा-स्थिरा-कान्ता-प्रभा-परा आदि आठ योग दृष्टिओं से सुग्रथित यह परिपूर्ण ध्यानयोग सर्व से निराला और शुद्धात्मानुभव प्रदाता है। जैन योग मार्ग का लक्ष्य : "मेरे घट ज्ञान-भानु भयो भोर । चेतन चकवा चेतना चकवी, भाग्यो विरह को सोर, मेरे घट ॥" __ (आनंदघन पद्यरत्नावली) जैन योग मार्ग मन-वचन-काया के त्रिविध योगों से पार ऐसे शुद्धात्म प्रदेश में ले जाता है जहाँ परिलक्षित होता है आत्मानुभव का ज्ञानभानु, ज्ञानसूर्य । महायोगी आनंदघनजी की ऐसी चेतना का चेतन के साथ का, 'सांत' का 'अनंत' के साथ का संमिलन और उस संमिलन की विशुद्ध आत्मानुभूति, समग्र आत्मसिद्धि, है जैन योग मार्ग का लक्ष्य। समग्रता समन्वयरूप जैन योग साधना : इस लक्ष्य का जैन योग साधना में अनेकविध रूपों से निरुपण है। वर्तमान के एक योगनिष्ठ जैनमुनि अन्य योगसाधनारत जैन मुनि को इस विषय में एक पत्र में लिखते हैं : १. योगशास्त्र : अष्टम् प्रकाश : कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य : पृ. ३, ४ (1969 आवृत्ति) (41)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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