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________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • • त्रिवेणी संगम रूप मोक्षमार्ग किन्तु एकान्त क्रिया मार्ग नहीं। १. जो हृदयप्रधान हो, जिसने अपने हृदयमंदिर में साकार भगवान विराजमान किये हों, वृत्तिप्रवाह प्रभु प्रति बहता हो, उस प्रकार की 'शरणता' और प्रभु का विस्मरण न हो उस प्रकार का 'स्मरण. ये दोनों जिसके चलते हों वह भक्त गिना जायेगा और उसकी यह आराधना पद्धति भक्तिमार्ग कही जायेगी। २. जो मस्तिष्कप्रधान हो, जिसका उपयोग ज्ञेयों से असंग ऐसे ज्ञान मात्र में टिका रहता हो वह ज्ञाननिष्ठ ज्ञानी कहा जायेगा और उसकी आराधना पद्धति ज्ञानमार्ग कही जाती है। ३. उपर्युक्त उभय मार्ग में से एक भी मार्ग पर जो आरूढ़ न हो फिर भी मार्गारूढ़ होने की जिसकी प्रबलतम भावना हो वैसे प्रत्याशी ( उम्मीदवार ) को उसकी पात्रता विकसित करने भक्ति और ज्ञानगर्भित क्रिया मार्ग का आश्रय अनिवार्य है, जिसमें विधिवत् यम-नियमों का पालन आवश्यक होता है। उन नियमों में से सामायिक प्रतिक्रमणादि मुख्य हैं । वे नियमित जिनवंदनादि भक्ति करें, शास्त्राभ्यास करें और प्रतिक्रमणादि करें ये तीनों पद्धतियाँ ही भक्ति, ज्ञान और योगसाधना का त्रिवेणी संगम, जिसका नाम क्रियामार्ग है ।००००० "क्रियामार्ग अपनाने के बाद भी - असत् अभिमानवश बाहुबलीजी का वर्षभर का कायोत्सर्ग प्रयत्न निष्फल गया और मान वमन होने के बाद चलने की क्रिया करते ही केवलज्ञान हुआ । ___"आज तो क्रियामार्ग के नाम से क्रियाभास इतने बढ़ गये हैं और साथ में गर्व ने भी मानों उन लोगों को सातवें आसमान पर पहुंचाया हो ऐसा प्रत्यक्ष देखा जाता है ।००० "बाहबलीजी ने कौन-सा प्रतिक्रमण किया था? स्थलभद्रजी के शेष तीन साथी जो सर्पबिल, सिंहगुफा और कुएँ के छोर पर चातुर्मास रहे थे वे कौन सी क्रिया करते थे ? समवसरण में कौन से क्रियाकांड का वर्णन शास्त्र करते हैं ? बहुतों को तो उपदेश श्रवण करते करते केवलज्ञान हो जाने की बातें शास्त्र स्वयं ही सुनाते हैं यह तो जगप्रसिद्ध बात है तो फिर आप क्रियाकाँडियों को भक्तिमार्ग पर चलनेवाले कृपाळु के भक्तों की ओर कटाक्षवृत्ति क्यों उत्पन्न होती है ?००० ___ "उक्त त्रिवेणीसंगमरूप मोक्षमार्ग अतीत के ज्ञानीजन आकर हमें समझा सकेंगे नहीं, हमारी भूल शास्त्र निकाल नहीं सकेंगे - इसलिये प्रत्यक्ष सत्पुरुष भगवान मार्गदर्शक रूप में अनिवार्य बन जाते हैं और उन्हें ही भगवान मानकर उनके मार्गदर्शन से जीव चले तो ही - वह क्रमशः भक्ति, ज्ञान और संवरक्रियारूप रत्नत्रय की सिद्धि कर सकता है। ____ "इसलिये कृपाळुदेव की उपस्थिति में, उन्होंने तीन रत्नों में से प्रथम सम्यग्दर्शन की आराधना रूप भक्तिमार्ग की प्रधानता बतलाई । ____ "फिर अनादि सिद्ध नवकार के पांचों पदों को 'परमगुरु' शब्द में समापन कर के उस पद का आंतरिक रहस्य प्रकट करने सहजात्म स्वरूप का अवलंबन लेकर 'सहजात्म स्वरूप परमगुरू' इस नवकार के सार रूप मंत्र को रटना यह नवकार मंत्र की ही महिमा रूप में है। नवकार के अर्थ रूप में ही यह संक्षिप्त मंत्र है। (39)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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