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________________ । श्री सहजानंदघन गुरूगाथा . १. आकाशवाणी का अनेक बार परिचय । २. अनहद ध्वनि, दिव्य दर्शन, दिव्य सुगंध, दिव्य सुधारस और दिव्यस्पर्श - इन पांचों दिव्य विषयों का साक्षात्कार । ३. भावि में होनेवाली घटनाओं का वर्तमान में क्वचित्-अनायास भासन । ४. इन्द्र पर्यंत के देवलोकवासियों का अनेकबार प्रत्यक्ष मिलन । ५. चैतन्य-टेलिविझन पद्धति से परम कृपाळु श्रीमद् राजचंद्रजी का प्रत्यक्ष दर्शन और आशीर्वाद । ६. श्री सीमंधर प्रभु के आशीर्वाद से एक विशिष्ट पद की अनुभूति । ७. महाविदेह क्षेत्र इस दुनिया से अलग स्वतंत्र दुनिया है ऐसी अचल प्रतीति । ८. आत्मलब्धि से श्री अष्टापद तीर्थगमन और वन्दना ।' ९. नर्कागार से लेकर सिद्धालय पर्यंत के जीवसमुदाय की बद्ध से मुक्त पर्यंत की विविध अवस्थाओं का प्रत्यक्ष तादृश दर्शन ।। १०. आत्मा और कर्ममल का तथा शरीर का भिन्न-भिन्न रूप में प्रत्यक्ष दर्शन ।' ११. धर्मास्तिकाय आदि अरूपी जड पदार्थों का प्रत्यक्ष दर्शन । १२. एकाकी विहार में विचरण करते हुए वन में मार्ग भूल जाते समय साकार स्वरूप का प्राकट्य और मार्गनिर्देशन; विधिवत् नदी-जल उल्लंघन करते हुए चम्बल के अथाग जल में देह का डूब जाना और तत्काल दैविक शक्ति के द्वारा शरीर को ऊपर उठा लेना, नौका-प्राकट्य होना और उस नौका द्वारा नाविक के रूप में दिव्यदेहधारियों का इस देह को उस पार पहुँचाकर अदृश्य हो जाना; पर्वतमालाओं में आसनस्थ रहते हुए सिंह, चित्ता आदि हिंसक पशुओं का सन्मुख आ जाना और फिर भी अडोल आसन में रहकर निर्भयत्व; फणीधर नाग का शरीर को स्पर्श कर लिपटकर बैठना' फिर भी समाधिस्थिति का बना रहना-देहभान प्राप्त होने पर उसका चुपचाप चला जाना; व्याधिकाल में दिव्य देहधारियों का प्रकट होना और आत्मनिष्ठा में बलप्रदान करना..... इत्यादि इत्यादि - यह सारा परमकृपाळु की कृपा का ही फल है, इस लिए इस आश्रम के साथ उनका पावन नाम जोड़कर, उनकी सद्भावस्थापना को उपास्यपद पर प्रतिष्ठित कर के यह देहधारी एकनिष्ठापूर्वक आराधना कर रहा है- करा रहा है ।। १. सन्दर्भ : स्वयं-स्वर में 'अष्टापद रहस्य दर्शन' नूतन सी.डी. में भी। २. सन्दर्भ : स्वयं-स्वर में 'आत्मदर्शन से विश्वदर्शन' नूतन सी.डी. में भी। ३. सन्दर्भ : स्वयं-स्वर में 'आत्मसाक्षात्कार का अनुभव' १ से ५ सी.डी. सॅट । ४. सन्दर्भ : स्वयं-स्वर में अनेक अन्य सी.डी. + स्वयंलिखित पत्र, लेख एवं 'अनुभूति की आवाज़' आदि पुस्तक में। ५. सन्दर्भ : स्वयंलिखित "उपास्यपदे उपादेवता" (गुजराती + हिन्दी) पुस्तक में। . (31)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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