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________________ श्री सहजानंदघन गुरूगाथा . उस स्थान को शबरी आश्रम के नाम से पहचान कराया जाता है । यह स्थान ही भूतकालीन जैनतीर्थ भोट है। भोट एक प्रकार के पथ्थर की जाति का नाम है । इस प्रकार के पथ्थर की खदान वहाँ हो और पश्चात्काल में उस खदान को ही बांधकर जलकुंड बनवाये हों यह सम्भव है । इसलिए उस भोट पथ्थर की खदान के कारण ही वह तीर्थ भोट नाम से प्रचलित हुआ दिखता है। क्योंकि हेमकूट एवं रत्नकूट ये नाम भी उन सभी स्थानों में संबंधित वस्तु की उपलब्धि के कारण दिए गए हैं। __अब तक के लेखकों ने इन तीनों में से केवल हेमकूट को ही जैनतीर्थ के रूप में वर्णित किया है। परंतु शेष दोनों का जैनतीर्थ के नाम से उल्लेख नहीं किया है। दिगम्बर संप्रदाय के प्राचीन लेखक ब्र. शीतलप्रसादजी लिखित 'मद्रास एवं मैसुर प्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक' ग्रन्थ में भी अंग्रेज लेखकों के अनुसरण के कारण उक्त उभय तीर्थों का वर्णन नहीं है उसका कारण ऐसा प्रतीत होता है कि उन उन गवेषकों को यहाँ विशेष स्थिरता करने का-रहने का अवसर मिला नहीं होगा। चक्रकूट की पूर्व दिशा में मंदिरों, महालयों के ध्वंसावशेष विपुल प्रमाण में विस्तृत विद्यमान हैं। उनमें से राजा विष्णुदेवराय निर्मित मंदिर अति विस्तृत सुरम्य और कलामय है। उसमें पाषाण रथ है जिसमे हाथी उत्कीर्ण हैं । बुंदेलखंड के दि. जैनों में गजरथ-महोत्सव की प्रथा आधावधि प्रचलित है उसका ही यह प्रतीक है। चार दीवारी में मंदिर की दीवार में एक छोटी दि. जैन मूर्ति भी विद्यमान है। कलापूर्ण सभामंडप में एक ही पथ्थर में २ से १६ पर्यंत अर्धविभागों में उत्कीर्ण स्तंभोंयुक्त अनेक स्तंभ हैं जिन्हें आस्फालन करने से अलग अलग सप्तस्वर ध्वनित होते हैं । (संगीत के सारेगम आदि स्वर)। हेमकूट की दक्षिण दिशा में स्थित विशालकाय विष्णुमंदिर से सटकर एक पक्की सड़क कमलापुरम् की ओर जाती है। उस पर एक मील चलने के बाद बांये हाथ पर कच्ची सड़क निकलती है। उस पर थोड़ा चलने के पश्चात् दांये हाथ पर बांधे हुए जलकुंड जैसे भाग में एक विशाल जिनालय विद्यमान है। उसमें प्रायः पानी भरा हुआ रहता है । उससे एकाध फर्लाग आगे बढ़कर किले में प्रवेश होता है । उसके कुछ खंडहरों को पार करने के बाद एक विशाल मंदिर कोट-कंगुरों से सज्ज है। उसके किले की दीवारों के भीतर-बाहर एवं मूलमंदिर की दीवारों के भीतर बाहर सर्वत्र रामरावण के युद्ध का तादृश दृश्य उत्कीर्ण है। गभारे के पार्श्व की दो बाजओं की दीवारों में दो जिनबिम्ब मनोज्ञ उत्कीर्ण हैं । उसके जैन मंदिर होने के चिन्ह होते हुए भी वह राममंदिर के नाम से प्रचलित किया गया है। उस मंदिर से बाहर निकलने पर आगे के मैदान के दोनों बाजुओं पर दो विभागों में विजयनगर साम्राज्य के भूतकालीन महाराजाओं के विशाल महल, शस्त्रागार, अश्वशालाएँ, गजशालाएँ, पाठशालाएँ, स्नानागार, उन्नत किले आदि के खंडहर विपुल प्रमाण में विद्यमान हैं । विशेष में यहाँ काष्ठ के बदले पाषाण में से उत्कीर्ण दरवाज़े भी थे, जिसका एक नमूना बचा हुआ है। गजशाला म्युझियम के रूप में परिवर्तित की गई है, जिसमें श्री बाहुबलीजी की एक प्रायः पांच फीट की खंडित खड्गासन प्रतिमा एवं दो एक जिनबिम्ब-शीर्ष केवल जैनों के अवशेष के रूप (19)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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