SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा आपसी मतभेदों का निवारण करके एकत्रित हुए । बीजापुर का अलि आदिल शाह, अहमदनगर का निझाम शाह, बिदर का बदीर शाह, गोलकोंडे का कुतुब शाह और बीहार का उम्मदशाह - इन पांचों ने मिलकर विजयनगर साम्राज्य के सैन्य का महासंहार किया । प्रजा को लूटा और इस नगर को तहस नहस कर दिया । नगर के स्थापत्यों को तोड़ते हुए प्रायः छ मास लगे थे । प्रजाजन बेचारे लाखों की संख्या में मौत के घाट उतार दिए गए । लाखों महालयों और हज़ारों मंदिरों को बारुद से उड़ा दिया गया.... । उस नगर की वैभवसंपन्नता की गुणगाथा सुनाते सैंकडों जिनालयों, सैंकडों शिवालयों, अनेक विष्णु - गणपति मंदिरों, हज़ारों गुफाओं, सैंकडों बाज़ारों, हज़ारों महालयों एवं कोट-परकोटों-किलों के ध्वंसावशेष यहाँ की पहाड़ी शिखरमालाओं और समतल भूमि में विस्तार से बिखरे हुए प्रत्यक्ष देखे जाते हैं । उक्त ध्वंसावशेषों का यत्किंचित् शब्दचित्र इस प्रकार है : १. जैनतीर्थ हेमकूट : यह एक ही पुढवीशिलामय, नाम मात्र की ऊँचाईवाला शिखर है, जिस की चारों और विशाल किले कोट परकोटे और पूर्वाभिमुखी दो उत्तुंग प्रवेश द्वार हैं । उसमें सैंकड़ों जिनालय भग्न- अभग्न अवस्था में विद्यमान हैं, परंतु एक भी जिनबिम्ब बचा नहीं है । उनमें से कुछ जिनालयों को शिवालयों तथा शैवमठ के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। कुछ सूने रिक्त खड़े हैं । जब कि कुछ नामशेष कर दिये गये हैं । शैवों के द्वारा जिनालयों के द्वार ऊपर के मंगल जिनबिम्ब घिस दिए गए हैं और उनके स्थान पर अन्य आकृतियाँ भी उत्कीर्ण की गईं हैं। शिलालेख मिटा दिए गए हैं । उनमें से एक पुढवी शिला में उत्कीर्ण शिलालेख में "ॐ नमो पार्श्वनाथाय " यह आदि वाक्य पढ़ा जा सकता है । वर्षाकाल में उसकी धोई गई मिट्टी में से सुवर्ण खोजकर मज़दूरी पाते हुए मज़दूर नज़रों से देखे हैं । इस कारण से ही इस शिखर का सार्थक नाम 'हेमकूट' प्रचलित है । हेमकूट के उत्तरीय भूभाग से सटकर तलहटी विभाग में कोट-कांगरों से सुसज्ज विशालकाय पंपापति शिवालय स्थित है, जिसका पूर्वाभिमुखी प्रवेशद्वार - गोपुरम् ११ मंझिल का एकसौ पैंसठ फीट ऊंचा है और उत्तराभिमुखी प्रवेशद्वार उससे छोटा है। इस मंदिर का निर्माणकार्य तीन तबक्कों में संपन्न हुआ दिखता है । संभव है कि नगरनिर्माण (विजयनगर - नगर निर्माण) के पूर्व यह श्री चंद्रप्रभ जिनालय हो और नगर-निर्माण के पश्चात् विद्यारण्य स्वामी की प्रेरणा से अमुक परिवर्तनों पूर्वक शिवालय के रूप में बदल दिया गया हो । इस शिवालय की पूर्व दिशा में प्राचीन जौहरी ( झवेरी ) बाज़ार के खंडहर दो श्रेणियों में विद्यमान हैं । उसे एवं मंदिर की उत्तर दिशा में आये हुए खंडहरों को व्यवस्थित करके दुकानों, होटेलों, धर्मशालाओं एवं मकानों के रूप में परिवर्तित कर और दूसरे भी नूतन मकान बांधकर अंतिम पैंतीस वर्षो से हम्पी ग्राम का पुनर्वसवाट चालु है । गाँव के उत्तरी तट पर बारहमासा प्रवाहवाली तुंगभद्रा नदी अस्खलित प्रवाह से बहती रहती है । (17)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy