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________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • | प्रकरण-३ Chapter-3] "जिसे तू चाह रहा था, वह यही तेरी पूर्वपरिचित सिद्धभूमि !" विद्यासिद्ध विद्याधरों की एवं स्वयं की पूर्वसाधना की सिद्धभूमि का इतिहास - प्राचीनकालीन तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रत स्वामी क्षेत्र-स्पर्शित तीन जैनतीर्थ एवं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम-स्पर्शित रामायण समय की किष्किन्धा नगरी - मध्यकालीन विशाल विजयनगर साम्राज्य की समृद्ध धरती - वर्तमानकालीन नूतन आश्रम-तीर्थ श्रीमद् राजचंद्र आश्रम की साधना भूमि "हम्पी तीर्थ का हर ज़र्रा मेरे लिए तीर्थस्थान है। विचरे जहाँ पर दो दो, परमगुरु महान हैं॥(निशान्त) जय जय तीर्थक्षेत्र हम्पी..... ! हम्पी तीर्थ की जय .... !! "तीर्थकर प्रभु मुनिसुव्रत से, धन्य हुई यह धरती, 'सद्भक्त्या ' के स्तोत्र भीतर है, गाथा मंगल करती... जय जय तीर्थक्षेत्र जहाँ पद धरने देव-मुनि-गण, सदा बनत सत्संगी, जहाँ धन रटते-कलरव करते, भक्ति -मेले के पंछी... , जय जय तीर्थक्षेत्र आत्मशुद्धि और आत्मसिद्धि की जिन्हें लगी है लगनी ऐसे साधक सजग मनुज को, रहत सदा निमंत्री... जय जय तीर्थक्षेत्र साधक-साथी, संत-साध्वी सब धून मचावै अटंकी, "सहजात्म स्वरूप" श्री नाम-मंत्र में रंगी... जय जय तीर्थक्षेत्र नीचे तीर्थसलिला बहती, तुंगभद्रा संसरती/संसरण करती 'ज्ञान, योग और भक्ति' त्रिवेणी, ऊपर रही है बहती... जय जय तीर्थक्षेत्र सद्गुरु उपकारी सहजानंदघन और जगमाता धनदेवी की भरी पड़ी है सदा जहाँ मस्ती, निजमस्ती, अलखमस्ती... जय जय तीर्थक्षेत्र "निशान्त" १. "दक्षिणापथ की साधनायात्रा" : गुजराती से अनूदित सार-संक्षेप । (14)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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