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________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा . इस काल, इस घोर कलिकाल-पंचम काल-सुखशीलों के देहासक्ति भरे काल में ऐसे अडिग रहनेवाले ये 'सहजानंदधन' नाम धारी भद्रमुनि कौन थे ? किस माटी से वे बने हुए थे ? किस माई के वे लाल थे ! किन उपसर्ग-परिषहों की पतझड़ों में वे पले हुए थे ? कहाँ से वे आये थे ? उनका परिचय पूछनेवाले - जड़ देह के परिचय-पृच्छक-को उन्होंने यह प्रत्युत्तर देकर अपना सही आत्मपरिचय दिया था : "नाम सहजानंद मेरा नाम सहजानंद, अगम देश, अलख-नगरवासी मैं निर्द्वद । नाम. १ .... नाम सहजानंद मेरा.....॥५ फिर भी हम उनका स्थूल परिचय भी, उनके भीतरी सूक्ष्म परिचय के साथ प्राप्त करने की बालचेष्टा करेंगे ! हाँ, बालचेष्टा ही । ऐसे स्वानुभूति संपन्न महापुरुषों का स्थूल और सूक्ष्म दोनों प्रकार का "समग्र परिचय" पाना सही परि-प्रेक्ष्य में पाना (in the right perspective) अति कठिनदुरूह-होकर कहाँ हमारे बस की बात है ? उनकी अकल्प्य ऊँचाई नापने की क्षमता हमारी छोटीसी, अधूरी-सी, टूटी-फूटी नाप-पट्टी में कहाँ ?... उनका वास्तविक परिचय है उनकी इस समग्र total ज्ञानदशा को समझना । और वह प्रतिदर्शित की है उन्होंने अपनी महती अर्थगंभीर रचना “समझसार" में, जिस की ओर चिंतन करने हम आगे अंतभाग में जाएंगे। सहजानंदधनजी, पूर्व मुनि-नाम 'भद्रमुनि', दीक्षा-पूर्व के श्रावक नामधारी श्री मूलजीभाई ('मूला' नक्षत्र में जन्मे हुए), इस वर्तमान काल में, इस देह को तो गुजरात-कच्छ के डुमरा गाँव में भाद्रपद शुक्ला १०, विक्रम संवत १९७०, तारीख ३० अगस्त १९१३ के शुभ दिन (शुक्ला दसवीं की 'पूर्णातिथि' के दिन ) धारण करने आये थे, परंतु इसके पीछे की पृष्ठभूमि में एक बड़ी-लम्बी, सुदूर की, अनेक पूर्वजन्मों की श्रृंखला थी, महाशृंखला थी। ___उस शृंखला की चिंतना में अधिक गहरे नहीं उतरते हुए स्वयं उन्हीं के द्वारा यत्र तत्र परि-कथित अपनी पूर्वकथा के चंद संकेतों को हम आधार मान कर चलेंगे । जैसा कि उन्होंने स्वयं की संक्षिप्त आत्मकथा में और कई स्थानों पर उल्लेख किया और कहा है, वे बीसवें जैन तीर्थंकर भगवान श्री मुनिसुव्रत स्वामी की निश्रा में निग्रंथ मुनि थे और कर्नाटक की इस हंपी क्षेत्र की योगभूमि में ही प्रभुसह उनकी क्षेत्रस्पर्शना-भूमिस्पर्शना हुई थी। अपने द्वारा स्वयं इस रत्नकूट-हेमकूट के निकटवर्ती क्षेत्रों में घूमकर की गई एतिहासिक खोज के पश्चात् उन्होंने एक संशोधनपूर्ण लेख लिखा था ५. वही : पृ. ११४ (11)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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