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________________ . श्री सहजानंदघन गुरूगाथा . | प्रकरण-२ Chapter-2 भद्रमुनि की पृष्ठभूमि भारत की श्रमणधारा के प्रवर्तमान काल के परम प्रवर्तक २४वें चरम तीर्थंकर भगवान महावीर की पाट-परम्परा के उत्तराधिकारी थे ऊर्ध्वरेता अंतिम श्रतकेवली. १४ "श्री कल्पसूत्र"- प्रणेता युगप्रधान श्री भद्रबाहु स्वामी । भगवान महावीर की विहारभूमि बिहार और स्वयं की महाप्राण ध्यान साधना भूमि नेपाल पूर्वभारत से आप अनेक मुनियों सह पधारे इस गिरिकंदरामय योगभूमि-विद्याभूमि कर्नाटक में-प्रायः २००० वर्ष पूर्व । केवल कर्नाटक ही नहीं, सारे दक्षिण भारत पर वे छा गए. जहाँ आज विलप्त ऐसा श्रमणधारा के बीसवें तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रत स्वामी का पूर्व-प्रभाव धरती के कण कण में और आकाशअवकाश के स्थल स्थल में तरंगित-आंदोलित था। फलतः न मात्र कर्नाटक के, किन्तु निकटवर्ती केरल, तमिलनाडु एवं आंध्रप्रदेश के संस्कृतिशिल्प-भाषा-साहित्य पर युगप्रधान भद्रबाहुस्वामी का महाप्रभाव छा गया। सारा साहित्य उस प्रभाव से अनुप्राणित हो गया । कन्नड़ भाषा में तो पंपा, रन्ना, जन्ना, अन्ना, बोपन्ना, रत्नाकर आदि जैन कवि-मनीषियों की कतार-सी आर्हतों-जिनों के तत्त्वबोधों और पुराण चरित्रकथाओं को लेकर चल पड़ी । यह कोई अल्प आश्चर्य की घटना नहीं कि कन्नड का ९५% साहित्य, जैन साहित्य धारा से परिप्लावित हो गया ! परिमाण और प्रकार गुणवत्ता - सभी दृष्टियों से इस साहित्य ने एक अनूठाप्रतिमान खड़ा कर दिया समृद्ध मानवजीवन का । जिनवाणी के रुप में स्थापित कर कन्नड़ के प्रथम महाकवि पंपा ने कर्णाटक के साहित्य जगत में जिनवाणी श्रुतदेवी मां सरस्वती की नई परिभाषा एवं महिमा प्रस्तुत कर दी इन शब्दों में : "आदि जिनेश्वर वाणी सरस्वती, सर्व जिनेश्वर वाणी सरस्वती ।"*१* तो तत्त्वज्ञ कवि रत्नाकर वर्णी ने जिनेश्वर-बोधित जगत् स्वरुप को इस नूतन रुप में चित्रित किया : "अनुगाळवु दुःख, पापिगे तन्ना । मनदोळु निश्चय, रळियद कोटिगे।" क्या क्या कहें, ऐसा मर्मभरा तत्त्व-साहित्य ही नहीं, गीत वीतराग'-सी संगीतकृतियाँ, भूवलय'सी गणितानुयोग की कृतियाँ और श्रवणबेलगोल-बाहुबली सी अनेक चिरंतन जैन शिल्प-कृतियाँ श्री भद्रबाहु प्रभावित परवर्ती काल में निरंतर निर्मित होती रहीं। भद्रबाहु द्वारा परिशोधित जैनधर्म प्रभावपूर्ण कर्नाटक की धन्य भूमि-योगभूमि में पदार्पण किया भद्रमुनि-सहजानंदधनजी ने : जिनकथित-श्रीमद् राजचंद्रजी द्वारा प्रकाशित लुप्त-गुप्त मूलमार्ग १. "कर्णाटक के साहित्य और संस्कृति को जैन प्रदान" (Jain contribution to Kannada Literature & Culture): स्वलिखित हिन्दी-अंग्रेजी शोधपत्र एवं "रत्नाकरन-हाडुगळु" शीर्षक 'रत्नाकर शतक' का स्वयंस्वरस्थ ओडियो सी.डी. । (8)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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