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________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा . प्रकरण-१ Chapter-1 ॥ मोक्षमार्गस्य नेतारम्, भेत्तारम् कर्म-भूभृताम् । ज्ञातारम्-विश्वतत्त्वानाम्, वन्दे तद्गुण-लब्धये ॥ काल के अंतराल को पार करनेवाले महाप्राण महायोगी युगप्रधानों की किंचित् झलक : विश्वविशाल विराट श्रमण संस्कृति की परिचायक कर्णाटक की कन्दराओं में भद्रबाहु से लेकर भद्रमुनि तक प्रा. प्रतापकुमार टोलिया ( श्रवणवेलगोळा-बेंगलोर-रत्नकूट हंपी, कर्णाटक) "कर्णाटे हेमकूटे विकटतरकटे चक्रकूटे च भोटे श्रीमत् तीर्थंकराणाम् प्रतिदिवसमहं तत्र चैत्यानि वन्दे ॥" | मंगलकर भद्रबाहुवन्दना मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतम प्रभु । मंगलं भद्रबाह्वाद्या: जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ॥ अनादि-अनंत की यह काल धारा । अवसर्पिणी का यह काल । उसके आदि-प्रणेता, आदि संस्कृति पुरस्कर्ता, आदि पृथ्वीनाथ, आदि निष्परिग्रही श्रमण, आदि तीर्थ-प्रवर्तक आदि तीर्थंकर आदिनाथ-वृषभनाथ-ऋषभदेव । उनके द्वारा किये गये इस भरतखंड के "भारत" नामकरण में किया गया दक्षिणभारत के इस प्रदेश कर्णाटक का नामकरण "कर्णाट" इस की प्राचीनता की प्रतीति कराता है। तब से लेकर बीसवें जैन तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ तक का कालांतराल, जो कि अनेक रहस्यों से भरा पड़ा है, भारतवर्ष की संस्कृति में श्रमणसंस्कृति-निग्रंथ आर्हत् संस्कृति-जैन संस्कृति के अपार, अभूतपूर्व प्रदान का अपने में बड़ा भारी महत्त्व संजोये हुए है । समग्र भारतवर्ष के इस अप्रकट सांस्कृतिक इतिहास में कर्णाटक का स्थान भी कोई छोटा नहीं है । महान खोजी अन्वेषक जब इन गूढ, आवृत्त रहस्यों को खोज निकालेंगे तब विश्व संस्कृति में भारत की सर्वोच्च गरिमा अधिक प्रकट हो जायेगी। -समकालीन काल कर्णाटक के गूढगुप्त गरिमापूर्ण रहस्यों को कुछ कुछ प्रकट करने लगा । इसका भी यहाँ के पाषाणखंडों में दबा पड़ा सारा इतिहास भी, अभी (1)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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