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________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • करते हैं वह कल्पित है । मैंने जो प्रत्यक्ष दर्शन किया उसका चित्रीकरण मैने स्वयं अपने हाथों से कुंमोजगिरि के दिगम्बर मुनि वयोवृद्ध महात्मा के आग्रह से रचना कर उन्हें सुपुर्द किया है ।" ("सद्गुरु संस्मरणः" पुष्पाबाई स्वयंशक्तिः पृ. 64-65.) इससे प्रश्न चिंतन पर पूर्णविराम लगता है । हृदय की निसंदेहता कह उठती है - "त्वमेव सच्चं निःशंकं ।" ___अतः उन्हें जो पूर्व महेसाणा चातुर्मास में अनुभूति के रूप में "अष्टापद दर्शन" हुआ था वह प्रत्यक्ष साक्षात् भी उन्होंने अपनी आत्मलब्धिपूर्वक प्राप्त किया है यह सिद्ध है। • फिर संवत् २००० सन् 1944 के पालनपुर चातुर्मास में उन्होंने "संवत् २००१ की कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र दिन पर १४ राजलोक एवं बध्ध-मुक्त जीवों के स्वरूप को चलचित्र की तरह देखा ।" "पालनपुरे लोकनाली दर्शनथी सिद्ध बद्ध मुक्त जीवन ।'२ पालनपुर में एक मध्याह्न की भावसमाधि में एक अन्य विशेष दर्शन भी हुआ - अपने जीवन-आराध्य एवं "पूर्वजन्म के मित्र-मुनि" ऐसे परमकृपाळुदेव श्रीमद् राजचंद्रजी का, उनके लिखे हुए मोक्षमाळा' ग्रंथ को पढ़ते हुए रूप में । १६ वर्ष की कुमारावस्था में लिखित श्रीमद्जी की इस महारचना में मुद्रित तस्वीर में दिख रहे पगड़ी पहने हुए कुमारज्ञानी राजचंद्रजी भद्रमुनि के पास अपनी पगड़ी उतारकर प्रत्यक्ष बैठ जाते हैं । मित्रमिलन वत् दोनों के बीच वार्तालाप होता है । श्रीमद्जी की पूर्वकथानुसार तीनसौ वर्ष पूर्व के "क्रांतिकारी दिगंबर मुनि श्री राजचंद्र" के आहार में उस काल के शिथिलाचारी तथाकथित् मुनियों ने षडयंत्र कर विष मिश्रण करवाया था। इडर तीर्थ में घटित इस घटना में तब "मुनि राजचंद्र'ने अनशनपूर्वक देहत्याग कर दिया था । पूर्वजन्म की यह सारी घटना श्रीमद्जी के स्वयं के श्रीमुख से ही अपनी भावसमाधिदशा के इस मित्रवत् मिलन में सुनने-जानने के पश्चात् भद्रमुनिजी को परमकृपाळु श्रीमद्जी के प्रति अनन्य शरणभाव से “पकड़" दृढ़ हो गई। संवत् २००१ सन् 1945 के जामनगर चातुर्मास के दौरान तीव्रज्वर की वेदना के समय दादागुरु श्री जिनदत्तसूरिजी ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर आदेश दिया कि, "उठ भद्र ! तू गच्छ की चिंता छोड़कर आत्मकल्याण के लिए तैयार हो जा ।"३ फिर पनः गिरनारजी तीर्थ की १७ यात्राएँ और अट्ठम तप के बाद दादाजी ने इस काल में भी क्षायिक समकित होने की पुष्टि कर, "तू तेरा सम्भाल !" का मंत्र देकर उन्हें आत्मानुभव-मार्ग पर सुदृढ़ किया। फिर बाद में आगे चलकर गोकाक गुफा के समौन एकांतवास में उन्होंने पुरुषार्थपूर्वक 'दर्शनमोह' का संपूर्ण नाश करके क्षायिक समकित' प्राप्त किया । तत्पश्चात् अगवारी में गुरुआज्ञा प्राप्त कर, उनके एकाकी विचरण एवं गुफावास का प्रारम्भ हआ। (शेष आगे २रे भाग में) १ "अद्भुत योगी" पृ. 9. २ "गुरुदेवनी पूजा : पृ. 9, 10 ३ "अद्भुत योगी" : पृ. 10. (133)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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