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________________ संस्कार शिबिर में बात कर रहीं थीं, उसका साक्षात् स्वरूप हमें ईडर के श्रीमद्-तीर्थ पर देखने को मिलने वाला था। ईडर पहाड़ श्रीमद् राजचंद्र विहार भवन पर पहुंचते ही इस मातृ-भक्ति-स्वरूप का प्रथम दर्शन हमें उसी रात के सत्संग में हुआ उस आश्रमस्थ वृध्धा भक्तमाई चंपा-बा में : ताई के सेवक कल्याणभाई की मातुश्री चंपा बा । उनके भक्ति-फलित श्रीमद्-दर्शन प्रसंग का वर्णन यहाँ प्रस्तुत न होकर अन्यत्र करेंगे। मातृभक्ति-स्वरूप का दूसरा दर्शन हमें दूसरे दिन प्रातः अचानक ही वहाँ पधारे हुए हंपी के योगीराज श्री सहजानंदघनजी सह उनकी भक्त-मंडली में पधारी हुई आत्मज्ञा माताजी 'जगत्माता' धनदेवीजी में हुआ। मातुश्री चंपा-बा, भोले हृदय की बड़ी ही "मुखर" थीं, जब कि माताजी धनदेवी जी बिलकुल ही "मौन" और गुप्त । वे तो लघुता धारण की हुई समर्पित थीं गुरुदेव सहजानंदघनजी एवं परमकृपाळुदेव श्रीमद्जी के प्रति । इन दोनों दिव्य मातृरुपों के बीच स्त्रीशक्ति का ऐसा ही तीसरा दिव्य मातृरुप था स्वयं विमलाताई का ! इस प्रकार तीन तीन दिव्य मातृरुपों का ईडर पहाड़ पर एक साथ साक्षात् दर्शन हो रहे थे !! स्त्रीशक्ति के जिस स्वरुप के प्रकटीकरण की तीन तीन दिन तक विसनगर महिला कोलेज के हमारे छात्रा-संस्कार शिबिर में विमलाताई ने बात की थी और हमारे निवास पर हमारे साथ बसकर उन्होंने हमारी दो नन्ही पुत्रियों (पारुल-वंदना) में भी अनुप्राणित एवं संस्कारित की थी, वह यहाँ ठीक तीन तीन रुपों में साकार प्रत्यक्ष थी !!! इस दीर्घ पीठिकायुक्त घटना एवं संरचना के केन्द्र रूप में सांकेतिक रूप में निमित्त थे योगीन्द्र श्री सहजानंदघनजी, जिनका ईडर पहाड़ पर अचानक, हमारी बिना जानकारी के आगमन, बड़ा अर्थ रखता था, सूचक था । श्रीमद्-शिक्षा के समाज द्वारा उपेक्षित पहलू "स्त्रीशक्ति जागरण" एवं हमारे स्वयं के श्रीमद्जी के प्रति, श्रीमद् जीवनादर्श के प्रति संपूर्ण समर्पण - दोनों दृष्टियों से । यहाँ तो इतना संकेत ही पर्याप्त होगा कि सहजानंदघनजी सह सर्वहितैषी श्री लालभाई सोमचंद के द्वारा ताई का ओर हमारा परिचय करवाना, अब तक के इस अज्ञात सत्परुष के चरणों में हमारी सितार एवं भक्ति का अनुगुंजित होना और ऐसी "जगत्माता" स्त्रीशक्ति के प्रदाता एवं श्रीमद्शरणापन्न सहजानंदघनजी के प्रति ताई का अहोभाव से प्रभावित होना - यह सब उपर्युक्त अनेक दृष्टियों से अर्थपूर्ण एवं महत्त्वपूर्ण था । जैसे विमलाताई अभिभूत हुई थीं सहजानंदघनजी से, वैसे ही वे भी अति विनम्रभाव से इस विदुषी आध्यात्मिक स्त्रीशक्ति के विकसित दिव्य-मातृरुप के प्रति नतमस्तक थे । दोनों महान आत्माओं का अन्योन्य लघुतापूर्ण आदरभाव देखते ही बनता था। भगवान महावीर की स्त्रीशक्ति के उन्नयन की उदात्त भावना को अंजलि देते हुए आचार्य विनोबाजी ने जैसे विमलाताई की अंतरस्थ 'शंकराचार्या' को जगा कर उन्हें 'विमलानंद' का नाम प्रदान किया था, वैसे ही श्रीमद् राजचंद्रजी की भी "देश को करने आबादान, दो माता को ज्ञान" की नारी-निर्माण की उत्कष्ट भावना से मानों प्रेरित होकर घनदेवीजी में आत्मज्ञान अनप्राणित कर उन्हें 'जगत्माता'
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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