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________________ डुमरा जैसे छोटे-से गाँव की अल्पसंख्यक आबादी के शिक्षार्जन - विद्यार्जन के साधन सीमित होते हुए भी अपने पूर्वसंस्कारवश उनका विकास विलक्षण रुप से मोड़ लेता है । उनके चरित्र लेखकों का चित्रण उसे चिरंतन बना देता है । अनेक जन्मों से उन्नत ऊर्ध्वप्रदेशों में बहती आई उनकी अनादि आत्मा की जीवनसरिता इस जन्म में किनकिन सिद्धक्षेत्रों में गुज़रती हुई, महाविदेही अंतर्दशा के महाप्राण ध्यान के द्वारा महाविदेह क्षेत्र के किस चैतन्य महासागर में जाकर घुल मिल जानेवाली थी, इसकी कल्पना तक किसे हो सकती थी ? • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • परंतु देख ली थी उनमें यह सम्भावना, स्वयं आत्मज्ञा जगत्माता परम पूज्या माताजी ने अद्भूत रुप में । प्रभुगुण गाती हुई वे "प्रभु सहजानन्दघन जन्म स्तवन" और "झुले पारणिये" में लिखती - गाती - जयजयकार करती हैं : "पश्चिम भारते कच्छ देश, पावन डुमरा संनिवेश परमार क्षत्रि मालदे वंशनां अवतंस जय जय हो.. । माता नयनादेवीनंद, सहजानंदघन जय हो... ! विशा ओसवाल सुजात, श्रावक धर्मे अति विख्यात शाह श्री नागजी कुलचंद, सहजानंदघन जय हो... ! माता. विक्रम शून्य सात नव एक दशमी, भाद्र सुदी ए नेक, सूर्योदय वेला घड़ी छेक, जन्म्या आप जय जय हो... ! माता." " भाद्रव दशमी आजे, ए जन्म ओच्छव काजे, महेन्द्रइन्द्रादि सुर आवे... हो सहजानंद झुले.... भावी जिन जाणी, सुभक्ति उलट आणी नमी वंदीने ओच्छव मंडावे... हो सहजानंद झुले ।"" ●●● धार्मिक ज्ञान उपरान्त शिक्षार्थ "मातापिता ने उन्हें डुमरा के छात्रावास में भरती कर दिया जहाँ से मूळजी रविवार को घर आते, छः दिन वहाँ रहते !... शिक्षकों और छात्रों के उ पक्षों में पिता-पुत्र का सम्बन्ध था । छात्र जन गुरु के अनुशासन में रहते थे । सहपाठियों के प्रति हृदय में विशिष्ट प्रेम था । छात्रावास के दौरान घटित व्यंतरादि की चरित्रलेखकों द्वारा लिखित घटनाएँ सही हों न हों अथवा अतिशयोक्तिपूर्ण हों तो भी मूळजीभाई की नवकारमंत्र श्रद्धा और निर्भयता का अवश्य परिचय देती हैं । "कच्छ डुमरा के स्कूल में सातवीं कक्षा तक अभ्यास करने के पश्चात् अध्ययन की अदम्य इच्छा होने पर भी संयोगवश पढ़ाई छोड़कर उन्हें आजीविका के हेतु बंबई महानगरी में आना पड़ा । "३ (विशेष पूर्व चतुर्थ प्रकरण की 'आत्मकथा' एवं उपर्युक्त चरित्रों- कथनों में ) (119)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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