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________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा . है तो अनेक जीव लाभान्वित हो सकते हैं । आजकल अशान्ति तथा व्याधि का ज़ोर बढ़ जाने के कारण सारा क्रम बन्द करवाया है । उसमें भी यह ज्ञानी पुरुष राज़ी नहीं है । विवश होकर चूप रहना पड़ता है क्योंकि हम सब एक हो गये हैं कि पूज्यश्री पाट पर विराजमान हों तब शाता पूछ कर सब अपने अपने स्थान में चले जायें । इस प्रकार विश्राम मिल सकता है। एसी बात है बेटा ! आपकी पुत्री को आप खुशी से ला सकते हैं । घर में छोटे-बड़े सब को प.पूज्यश्री के तथा मेरे आशीर्वाद । छोटुभाई के घर में एवं जो भी पूज्यश्री के विषय में पृच्छा करें उन सब को आशिष । ॐ शान्ति ! माताजी के आशीर्वाद सब को हार्दिक आशीर्वाद - सहजानन्दघन (23) दिनांक : 23-12-1970 (गुरुदेव की विदा के बाद) भव्यात्मा श्रीमान् प्रतापभाई ___ बालगोपाल सब स्वस्थ होंगे । आपका पत्र अनोपचन्दभाई ने दिया । पढ़कर मन में उदासी का अनुभव हुआ । संसार की समस्याएँ और कठिनाइयाँ मनुष्य को अत्यन्त व्यथित कर देती हैं । यह संसार किसीको चैन से बैठने नहीं देता, इसलिए, बेटा हिंमत रखो । आये हुए बोझ को (दुःखों को) शान्ति एवं समभाव से सहन कर लेना है । साथ साथ आत्मलक्ष महापुरुषों का स्मरण करना । पूर्णिमा के दिन आपकी राह देखी थी परन्तु छोटुभाईने बाद में सब बातें बताई तो सन्तोष मान लिया । बेटा, मेरा दिमाग भी काम करता नहीं है । प.पू. प्रभु का विरह सताता है । इस कारण से किसीको भी पत्र कम ही लिखना होता है। __घर में सब की तबियत अच्छी होगी । सब को आशिष । आपकी भाभी को हिंमत बंधाना । आप भी हिंमतपूर्वक इन सब झंझटों से पार उतरें यही आशिष । कितना भी कठिन समय आये, लेकिन आत्मा का विचार करना, उसका विस्मरण न करना, भाई ! श्री छोटुभाई के घर सब को आशीर्वाद कह दें । ॐ शान्तिः । माताजी के आशीर्वाद (112)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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