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________________ पूज्य गुरुदेव । B प्रतापकुमार टोलिया का पत्रसंवाद ( स्वयंपत्र : प्रथम हम्पी यात्रा के बाद का प्रथम भावप्रेषण) (8) अनेकशः प्रणाम स्वीकार करें । • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • (94) बेंगलोर दिनांक : 29-10-1969 वहां से लौटने पर आपके साथ का अल्प समय भी, आप की प्रेरणा से परम कृपाळुदेव की सतत स्मृति बनाए रहा है और वृत्ति आत्मस्थ बनी रही है । बार बार कृपाळु देव के वचनों की ध्वनि कानों में गुंजती-सी सुनाई दे रही है और उनका परम शांतरसपूर्ण मुखारविंद नेत्रों के सामने गड़ा-सा रहता है । “उपास्यपदे उपादेयता" का एकांत में अध्ययन-अनुशीलन करते हुए परम आनंद एवं आल्हाद का अनुभव किया, एक बार तो उसके निमित्त से अपनी अवस्था का निरीक्षण करते करते रो पड़ा, आंसुओं को पर्याप्त समय तक रोक नहीं पाया । उसी तत्व सागर में डूबा रहूं और आत्मस्वरूप की जागृत स्मृति बनाए रखकर कृपाळुदेव के चरणों में स्थित रहूं - यह भावना, यह इच्छा सतत रही है । इसे दृढ़ीभूत करने की दृष्टि से एवं एकांतवास में कालयापन की दृष्टि से वहाँ की गुफा में रहने और आपके सान्निध्य का अनुग्रह पाने वहाँ पुनः पुनः आने का आकर्षण, लगाव बढ़ रहा है । यदि सब मेरे बस में होता तो अभी से महीने भर के लिए वहाँ रुक जाता, परन्तु ऐसा अपूर्व अवसर कब आएगा यह ज्ञात नहीं और इतने विशेष समय के लिए तो जब आ पाऊँ तब की बात तो दूर रही, परन्तु अनुकूलता रही और आपके अनुग्रह ने बल प्रदान किया तो दीवाली के दो तीन तो आपके समीप्य में आ जाना चाहता हूं । वैसे दीपावली का दिन मेरे स्थूल जीवन का निमित्त है, जन्मदिन है । यह यदि वहाँ के वातावरण में बीता पाया, तो अपने आप को कृतकृत्य समझ सकूंगा । फिर मुझे 11-11-1969 या 12-11-1969 भाई दूज के दिन तो यहां से अहमदाबाद जाने के लिए लौटना है । आ सकुं तो आपके साथ के संग को छोड़कर शेष समय एकांत और संपूर्ण मौन में रहना है । जैसी आपकी आज्ञा हो, वैसा हो, यह अब प्रार्थना है । कृपाळुदेव के, आपके, एकांतवास के निमित्तो में बने रहने की सतत अभीप्सा के साथ, विनयावनत प्रताप के भाववन्दन ।
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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