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________________ Second Proof Dt. 31-3-2016 74 - (प्र. M) ऐसे प्रभु वीर की ही प्रशस्त, अनन्य भक्ति में लीन गौतमस्वामी को केवलज्ञान न हो ? उसकी चिंता प्रभु को थी। उनकी चिंता के कारणरूप, अपने प्रति जो स्नेह-राग था उसे तोड़ने प्रभुने उन्हें अंतिम समय अपने पास नहीं रहने दिया। देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध देने भेजा और..... गौतम विलाप ( घोषगान : M: करुणतम विलाप-स्वरः गम्भीर ध्वनि ) • महावीर दर्शन महावीर कथा (प्र. F) . और इस प्रकार प्रभु द्वारा प्रतिबोध कार्य को प्रेषित गणधर गौतम स्वामी प्रभु की मुक्ति *** के बाद जब लौटे, तब यह (निर्वाण-वार्ता) जानकर मोह राग वश टूट पड़े और फूट फूट कर रो उठे - "आप प्रभु निर्वाण गये, रहत नहीं अब धीर हिया । मुझे अकेला छोड़ गये, अब कौन जलाये आत्म- दिया ?" (प्र. M. गौतम - वेदना वाणी : विरह व्यथा Deeply Pathetic rendering with Instl. BGM) "हे प्रभु ! अब मैं किन के पावन चरणों में बैठकर प्रश्न पूडुंगा ?... किन्हें 'प्रभु भन्ते, भगवंत ।' कहकर पुकारूंगा ?... हे प्रभु ! अब कौन मुझे 'गौतम ! ऐसी आत्मीय वत्सल वाणी में बुलायेगा ? हा... हा... हा... हा... वीर प्रभु! आपने यह क्या किया ?... अहो ! आपके निर्वाण के समय आपने मुझे दूर किया ?... क्या मैं हठ करके बालवत् यदि आपके साथ आता तो आपकी वह मुक्ति क्या संकीर्ण बन जाती ?... या वहाँ जाने में मैं आपके . लिये बोझरूप बनता ?... आपने क्या सोचकर मुझे यहाँ से दूर किया... ? हे प्रभु !... वीर.... वीर... वीर... !!" ( श्री कल्पसूत्र ) - (प्र. F) • इस प्रकार महाविलाप करते हुए प्रशस्त रागी / प्रशस्त भक्त गौतम के मुख में केवल 'वीर' शब्द रह गया और वे सम्यक् विचार में स्वात्मचिंतन में चढ़े.... (पार्श्वगान M) "शुद्ध बुद्ध चैतन्यधन, स्वयंज्योति सुखधाम । बीजुं कहीए केटलुं ? कर विचार तो पाम ॥" ( आ. सि. 117) ( और कहें क्या, कितना ? ध्यान लगाय निजठाम । ) (प्र. F) और रोते हुए विरही गौतम को (तब ) यकायक स्मृति में सुनाई दी भगवन्त की वह अप्रमत्त आज्ञा : (74) = (सूत्रघोष M) "समयं गोयम् मा पमायए ।" " पलभर का भी प्रमाद मत कर, हे गौतम । " (Echoes) "हे जीव ! प्रमाद छोड़कर जागृत हो जा, जागृत हो जा।)" ( श्रीमद्जी ) (प्र. F) इसे सुन, आर्त्तध्यान त्याग कर गहन आत्मचिंतन के द्वारा वे आत्म-श्रेणि पर चढ़ने लगे : " (Instrumental celestial Music)
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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