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________________ Second Proor DL. 31-3-2016.52 • महावीर दर्शन - महावीर कथा . (प्र. F) ऐसे घोर उपसर्गों और कष्टों-परिषहों से भरी लम्बी साधनायात्रा बाह्यांतर निर्ग्रन्थ पुरुषार्थी महावीर ने आत्मभावना में लीन होकर छोटी कर दी और आनंद से भर दी.... (Vibro Sound) (प्र. M) हाँ, भीतर में परिस्थिति-प्रभावविहीन, प्रतिक्रिया-प्रतिभावविहीन, आनंदभरा सजग शुद्धात्मध्यान : बाहर कैसे-कैसे कितकितने घोर उपसर्ग-परिषह..... ! कैसे कैसे प्रतिमा-ध्यानमय कायोत्सर्ग ..... ! कैसे कैसे मौन-ध्यान की सुदीर्घ धारा के अभिग्रह-महाभिग्रह..... !!! (प्र. F) उनके घोरातिघोर तप भी इस गहन आत्मध्यान से सहज ही निकले .... उनके विहारमहाविहार भी इसी धुन में चले..... उनके स्वल्प आहार भी अभिग्रहों की पवित्रता-शुचिता में पले और ढ़ले .....। (प्र. M) सर्वत्र एक परम समता, प्रशमरसपूर्ण प्राणपराग की प्रसन्न प्रफुल्लितता, तीनों समितियों की अद्भुत सजगता और सर्व जीवों के प्रति बहती निष्कारण करूणाशीलता !! (प्र..F) आहार का जय, निद्रा का जय, आसन का जय । साधनामार्ग के ये तीन प्राथमिक जय .... । इन बाहरी जों के साथ भीतरी जप : अभय, अद्वेष, अखेद भी । (प्र. M) प्रभु ने साड़े बारह वर्ष की इस सुदीर्घ साधनायात्रा में - आहार भी कितना लिया ? - निद्रा भी कितनी ली? - आसन भी कितने दृढ़ लगाये रखे ? कायोत्सर्गमय खड़गासन-ज्ञानमय पर्यंकासन . देहभिन्नत्वभरा, केवलज्ञान-प्रदाता गोदोहिकासन..... ! (प्र. F) इन सभी के बीच उनकी भीतरी लौ लगी रही - (गान-M) "इस तन का दीवा करं, बाती मेलुं जीव; लोही सींचुं तैल ज्युं, कब मुख देखें पीव ? (- कबीर) "मनसा प्याला, प्रेम मसाला, ब्रह्म-अग्नि परजाली; तन-भाठी अवटाई पिये कस (तब) जागे अनुभव लाली ।" (- आनंदघनजी) (प्र. F) तन-भाठी को जलाकर के, मन के दीप को प्रज्वलित करके, यह आत्म-ध्यान की अगन प्रभु ने जलाई थी, एक अखंड लौ अंतस् में लगाई थी ...... (प्र. M) तब कहीं प्रकट हो रही थी उनकी आत्मानुभूति की लाली, 'अभय-अद्वेष-अखेद' भरी खुशहाली, गहरे अंतस्-सागर से निकले इन आनंद-रत्नों और मोतियों की थाली ! (गान : F : CH: M) "शुद्ध बुद्ध चैतन्यधन, स्वयं ज्योति सुखधाम ।। और कहें क्या, कितना, ध्यान लगाय निजठाम ॥" (- आ.सि. 117) (52)
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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