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________________ Second Proof Dt. 31-3-2016-49 • महावीर दर्शन - महावीर कथा (प्र. M) और लोकान्तिक देवों की स्मृति एवं वर्षभर के अपरिमित दान के बाद अंतमें आया वह दिन अपने को पहचानने हेतु जाने का, सर्वसंग परित्याग के महाभिनिष्क्रमण के भागवती दीक्षा के 'अपूर्व अवसर' का ... । ( Soormandal) वह अतिविस्तृत, अति विशाल 'चन्द्रकांता' शिविका और वह अष्टमंगलादि युक्त विराट शोभायात्रा उनके दीक्षाकल्याण की ! (प्र. F) पलायन से नहीं, क्षमा, समझौता और स्नेह से ली गई इस भागवती दीक्षा के समय ही जन्मजात तीन ज्ञानवाले वर्धमान महावीर को चौथा (मन वाले जीवों के मनोभावों को जाननेवाला) "मनः पर्यव ज्ञान" उत्पन्न हुआ और वे चल पड़े अपनी आत्मा को दिलानेवाले पंचम ज्ञान और पंचम गति मोक्ष को खोजने अनंत, अज्ञात आत्मपथ पर एकाकी अकेले, असंग.... । (Soormandal) (प्र.M) (प्रभु वीर के) इस सर्वसंग परित्याग के समय, पत्नी पुत्री की अंतर्दशा कैसी रही होगी ?... उनके भीतर कैसे भावांदोलन उठे होंगे ? वनवासी लक्ष्मण की 'उपेक्षिता ऊर्मिला' और ...महाभिनिष्क्रिमण कर गये गौतम बुद्ध की 'विरहिणी यशोधरा' से तो महावीर की इस ऊर्ध्वचेता यशोदा के मनोभाव ऊंचे ही उठे होंगे ?... अन्य चरित्र लेखकों-कवियों का कम, किन्तु हमारे साथ, हमारी ही भांति एक सहृदय मम कवि का तो इस और कुछ ध्यान गया है और उन्होंने इन भावों को प्रश्न- वाचा दी है - - - (प्र. F) नारी उद्धारक वीरप्रभु ने अपनी ही अर्धांगिनी के लिए कुछ तो सोचा होगा ? वास्तव में क्या महावीर के महाजीवन के निर्माण में यशोदा का मूक योगदान कम था ? (प्र. M) या "मैं देहादि स्वरूप नहीं और देह, स्त्री, पुत्रादि कोई मेरे नहीं" ऐसी स्पष्ट, तीष्ण आत्मभावना से राग-द्वेष के पुष्पवत् कोमल बंधनों को काटा होगा ?... समूचे संसार में नायक रूप ऐसी रमणी को उन्होंने 'केवल शोकस्वरूप' समझकर त्यागा होगा ? (BGM गानपंक्ति M ) “સઘળા આ સંસારમાં રમણી નાયકરૂપ, थे त्यागे त्याग्यं अधुं डेवल शोऽस्वप." ( श्रीमद् राजचंद्र ) (प्र. F) परंतु स्वयं यशोदा जैसी समुन्नत अर्धांगना ने तब क्या सोचा होगा ? (काव्यगान M) "जिस दिन महावीर ने स्वयं ही त्यागी बनने का कहा होगा, देवी यशोदा । दिल में आपके, उस वक्त क्या हुआ होगा ? ( क्या ) कभी भी आपको खयाल आया था, कि पति के साथ मैं जाउं ? नेम के पीछे राजुल चली थी, ऐसी रीत निभाउं... ? या नन्ही सी बिटिया की खातिर घर में रहना पड़ा होगा ? (प्रियदर्शना) • कोई न जाने देवी । आप की होगी कैसी समस्या ? महान त्यागी पति के पीछे, होगी कैसी तपस्या ? अबोल है इतिहास आपका, क्या क्या आपको हुआ होगा ? क्या क्या आप पर बीता, गुज़रा होगा ?" - (- श्री शांतिलाल शाह : 'स्तवन मंगल' : 42) (49)
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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