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________________ Second Proof DL. 31-3-2016.47 • महावीर दर्शन - महावीर कथा . (प्र. M) साँप बने हुए उस देवता ने फिर थककर क्या किया ? (Horror Sound Effects : भयदर्शक वाद्य) (गीत-पंक्ति काव्यपाठ) "रूप पिशाच का लेकर देवता, वीर को पीठ बिठाई दिये। नन्हा-सा बहादुर बाल कुमार, उस देव को मुट्ठी लगाई दिये ॥ (प्र. F) साँप-पिशाच-दैत्य और दूसरे प्रसंग में पागल हाथी - सभी को अपने बाल-पराक्रम से कुमार वर्धमान वश करते रहे ..... (गीत-पंक्ति M) "ए..... हाथी, सर्प, दैत्य को क्षण में भगाया, सिखाये अभय के पाठ रे... धन्य महावीर प्रभु । क्षत्रियकुंड में प्रकट भये" (प्र. M) बाल-किशोर-कुमारावस्था बीत चुकी .... युवा आई .... भीतर से वे अलिप्त हैं, परन्तु 'भोगवली' कर्म अभी कुछ शेष हैं, माता-पिता के प्रति भक्ति-कर्तव्य अभी शेष है, यशोदा का स्नेहऋण अभी बाकी है। (Soormandal) और - माता, मातृआज्ञा, कुमार राजकुमार वर्धमान के सन्मुख ले आते हैं- यशोदा को !..... यशोदा.. समरवीर राजा की यश-दात्री । स्वनाम-धन्या सुपुत्री ..... (प्र. F) जिस के गर्भागमन से ही पिता राजा को युद्धविजय और यश प्राप्त हुए और जो शायद त्यागी बननेवाले पति वर्धमान के भावी कर्म-युद्ध में भी 'पथ-बाधा' नहीं, अवरोध-अंतराय नहीं, यश-प्रदाता ही बननेवाली थी, ऐसी 'यशोदा' .....! (प्र. M) जिस की अंतर्व्यथा की कथा, आगे संकेत करेंगे उस प्रकार, शायद किसीने नहीं लिखी ...! (प्र. F) इस यशोदा का पाणि-ग्रहण करवाने वर्धमान कुमार के पास पहुंची है माता त्रिशला । (प्र. M) मातृ-आग्रह, मातृ-आज्ञा, गर्भावास में स्वयं की हुई मातृ-पितृ भक्ति-प्रतिज्ञा और दूसरी ओर से भवसंसारभ्रमण-भय विचार - दोनों पहलूओं के गहन चिंतन के पश्चात् वर्धमान एक निर्णय पर पहुंचते हैं। मातापिता के सुखहेतु भी और अपने भोगावली कर्म निःशेष करने हेतू भी वे स्वेच्छा से यह निर्णय करते हैं - विवाह करने का (संदर्भ : 'त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र') (प्र. F) और राजकुमार वर्धमान महावीर यशोदा का पाणिग्रहण करते हैं, उससे विवाह करते हैं - यद्यपि दूसरी मान्यतानुसार वे अविवाहित कुमार ही रहते हैं।... इस गृहस्थाश्रम में, वैभवपूर्ण गृहस्थाश्रम में भी वे जीते हैं अपने उस जलकमल-वत् जीवनादर्श के अनुसार - (प्रतिध्वनि घोष-M) "जल में, कीच में जन्म लेकर भी जैसे जल से कमल अलिप्त रहता है, वैसे ही संसार के बीच रहते हुए भी आत्मार्थी को संसार-वासना से अलिप्त रहना है।" (Soormandal) (47)
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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