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________________ Second Proof Dr. 31-3-2016 - 42 • महावीर दर्शन - महावीर कथा (घोष) "जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइ ।" (आचारांगसूत्र) "जिसने आत्मा को जाना, उसने सर्व को जान लिया।" - निग्रंथ प्रवचन : श्रीमद् वचनामृत (प्र.) आत्मा के इस विस्मृत स्वरूप की आत्मा के निजधर्म-जिनधर्म-की उसने आहलेक जगाई - 'धर्म' के नाम पर चल रहे अधर्मो-ढोंग पाखंडों को ललकारती हुई - (समूहगान) "कलि-काल में इस जंबू भरत में, धरा देह निज-पर-हित परत में; मिटाया मोह-अंधेरा, हो कृपालु देव ! धर्म-ढोंग को दूर हटाकर, आत्म-धर्म की ज्योत जगाकर, किया चेतन-जड़ न्यारा रे, हो कृपालु देव !" - श्री सहजानंदघनजी : भद्रमुनि : भक्ति कर्तव्य : 85) (प्र.) हमें पहुँचना है हेमचंद्राचार्य के बाद के आत्मधर्म-ज्योत जगाने वाले इस दूसरे प्रकट और गुप्त युगपुरुष-लघुशिष्य द्वारा चेताई गई महावीर-महाजीवन-महाज्योत के आलोक में - उस अनंत, अद्भुत आत्मप्रकाश के अंतर्लोक में - सर्वप्रथम उसकी उस वर्तमान वीरशासन-विषयक अंतर्वेदना. का अवगाहन करके : (प्र. सूत्रघोष) "वर्तमान में जैनदर्शन इतना अधिक अव्यवस्थित अथवा विपरीत स्थिति में देखा जाता है कि उसमें से मानों जिनका अंतर्मार्ग का प्रायः ज्ञान-विच्छेद जैसा हुआ है।" (श्रीमद् वचनामृत: 708). (प्र.) वीरशासन की सर्व वर्तमान विपरीतता-विश्रृंखलताओं के उस पार अब हम पहुंचेंगे हमारा सारा देहभान-बाह्यभान भूलाकर, युगों से डूबे हुए आत्मध्यान के वीर-मंदिर को खोजने ! अंगुलि पकड़ेंगे उस युगदृष्टा सत्पुरुष की और पहुँच जायेंगे आत्मध्यान के, महामंदिर में विराजित परमपुरुष प्रभु महावीर के आत्मदर्शन में - 'महावीर दर्शन' में - वह सत्यकथा हमें प्रथम ले जाती है एक निराली सृष्टि में - (प्र. 2) "हजारों वर्ष पुरानी बात है। कहते हैं कि वीर परमात्मा का विराट मंदिर गहन सागरतल में डूब चुका था बरसों से ।... मैं आराम से सोया हुआ था प्रमाद की तले-दीबार ... अचानक उस युग-प्रहरीने, उस मंदिर के शिखर पर की घंटियाँ बजा दी... सुनकर, चौककर मैं जाग उठा, चल पड़ा उस मधुर जादुभरे संगीत की ओर, और क्या देखता हूँ आखों से - "महावीर स्वामी नयनपथगामी भवतु मे... महावीर स्वामी ..." (गान-श्रुति सह ध्यानसंगीतमय महावीरदर्शन-महाजीवन कथारम्भ) Copyrighted : JINA BHARATI : V.B.I.F., Bangalore : ___Prof. PRATAPKUMAR J. TOLIYA. (42)
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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