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________________ Second Proof DL. 31-3-2016- 15 • महावीर दर्शन - महावीर कथा • प्रधानरूप से, पूर्वोक्त अन्य उपकारक परमपुरुषों के उपरान्त एवं ग्रंथादि अन्य परिबलों के बावजूद, इन दोनों परमगुरुदेवों के गुरुगम से प्राप्त तत्त्व दृष्टिदान से - आत्मानुसंधानयुक्त अंतर्ध्यान से - इन दोनों के साक्षात् महावीरवत् जीवनदर्शन से परिनिर्मित हुआ है यह महावीर-दर्शन, महावीरमहाजीवन-संदर्शन, महावीर कथा गान निरुपण । इसमें हमारा प्रायः कुछ नहीं, मेरा मुझमें कछु नहीं सुदूर अतीत से महावीर के महाजीवन की प्रेरणा परिकल्पना और अंतरचेतना, इन दोनों के वर्तमान के जीवन से हमें मिली । महावीर की आत्म-स्वरूप आधारित, अंतर्-बाह्य मौनध्यान युक्त, अप्रमत्त जीवन साधना कैसी "परिस्थिति-प्रभाव मुक्त" ज्ञाता-दृष्टा भावयुक्त हो सकती है और सत्पुरुषार्थआत्मभान के द्वारा आज वर्तमान में भी सम्भव और सिद्ध हो सकती है, यह हमने इन दोनों से जाना, समझा और सीखा । उन सबका प्रतिदर्शन है यह छोटा-सा "महावीर दर्शन" । इसमें सर्वत्र इन दोनों की आत्मानुभूतियाँ-प्रतिध्वनित हैं। उपर्युक्त ग्रंथाधार, अध्ययन-अनुशीलन प्रबुद्धजन-विचारविमर्श, एतिहासिक जीवनस्थान-क्षेत्रसंस्पर्शन, स्वयं के अंतर्लोक में ध्यान-साधन, आदि अन्य परिबल इस गुरुगम की पूर्ति में ही हैं। महावीर-प्रणीत आगमज्ञान, आत्मज्ञान एवं आत्मध्यान का मार्ग आज जब अधिकांश में लुप्त-विलुप्त है, तब यह महावीर दर्शन किंचित् नूतन प्रकाश शायद डाल सकता है, अभिनव दृष्टिप्रदान कर सकता है, यह श्रद्धा है। इस दर्शन का प्रति-दर्शन-अनुचिंतन कितना सक्षम और सिद्ध हुआ है इसका निर्णय सजग, प्रबुद्ध और खुले दिमाग के गुणग्राही श्रोता-दृष्टा-अंतर्दृष्टा करेंगे और हमें सूचित भी करेंगे यह विनम्र अनुरोध है, प्रार्थना है । सभी के लिये, विशेषकर ज्ञानार्थी-साधनाकामी युवा-पिढ़ी के लिये यह प्रयत्न ज्ञेय एवं उपादेय हो ऐसी परमगुरुदेवों के प्रति हमारी विनय-वंदना सह प्रार्थना है। "महावीर दर्शन" के इस परिश्रम-साध्य निर्माण में जितना श्रेय, जितना उपकार उपर्युक्त सभी गुरुजनों एवं परिबलों का है, उतना ही मिला है सहयोग कलाकारो, मित्रों, छात्र-छात्राओं एवं विशेषकर हमारे स्वजन-परिजनों का । [धर्मपत्नी सुमित्रा, स्वर्गीया ज्येष्ठा सुपुत्री कु. पारुल (M.A. Gold Medalist, 7 Awards Winner, 7 Books' Author), नैचरोपेथ एवं सुवक्ता द्वितीय सुपुत्री चि. डो. वन्दना, (N.D.) कलाकार सेवासंनिष्ठ तृतीय सुपुत्री चि. भविता (M.A.), व्यवस्था-निपुण कॅनेडा-स्थित चतुर्थ सुपुत्री चि. फाल्गुनी एवं संगीत-नृत्य-साहित्य-विद् पंचम सुपुत्री अमरिका-स्थित चि. किन्नरी, (M.S. Media Communications) एवं समर्पित भतीजे चि. मुकेश-कमलेश, चि.बाबुभाई-अंकित-कुशल] इनके अतिरिक्त अनेक नाम-अनाम प्रबुद्ध मित्रों डो. धनवंत शाह,डो.जितेन्द्र शाह, श्री सूर्यकांत परीख, श्री शांतिलाल गढ़िया, श्रीयुत् मधुभाई पारेख एवं वसंतभाई खोखाणी, श्री मनहरभाई कामदार, श्री मनुभाई पटेल, श्री शशीकान्त महेता..... इत्यादि का भी अनेक रूपों में हम ऋण-स्वीकार किये बिना रह नहीं सकते। ___ अखिर यह 'महावीर दर्शन' सभी का है, ठीक वैसे ही जैसे स्वयं महावीर । क्या महावीर मुक्त-उन्मुक्त असीम महावीर किसी एक सीमा के, एक समुदाय के, एक संप्रदाय के हो सकते है (15)
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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