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________________ Second Proof DL.31-3-2016 - 13 • महावीर दर्शन - महावीर कथा . ऐसी सर्व सिद्ध समान वर्तमान धन्यात्माओं का स्मरण, दर्शन-स्पर्शन, वन्दन करते हुए इस काल में, हमारे जीवन में सर्वाधिक उपकारक, सर्वाधिक निकट बने हुए "परमपुरुष प्रभु सद्गुरु" जन का परम सौभाग्य, परम सान्निध्य, परम उपकार प्रतिवेदित किये बिना हम कैसे रह सकते है ? महापुरुषार्थी महामानव महावीर का ही प्रतिरूप, प्रतिनिधि स्वरूप, प्रति-दर्शन हमने उनमें पाया है यह हमारा महाभाग्य है। इन अनेक वर्तमानकालीन प्रकट-अप्रकट पूजनीय परमपुरुष परमगुरूओं के प्रत्यक्ष दर्शन, निश्रागत सान्निध्य, समागम-गुरुगम-साक्षात्कार का हमें परम लाभ प्राप्त हुआ है । प्रायः उन सभी में हमें महावीर की अंतरचेतना के सतत अप्रमत्त पुरुषार्थ साधना के ही दर्शन हुए - कहीं आंशिक, कहीं अधिक समग्र संपूर्ण रूप में । नाम कितने गिनायें ?.... उन सभी में महावीर की करुणा और अहिंसा-अपरिग्रही अकिंचनता-अनिकेतता को युगानुरूप नवरूप में प्रकट-प्रतिबिंबित करनेवाले महात्मा गांधीजी-आचार्य विनोबाजी, महावीर के अनेकांतिक अनेकरूपी मर्मों को - रहस्यभरे जीवनदर्शन को अनगिनत ग्रंथों के गहन सागर में जीवनभर डूबे रहकर अनमोल मोती खोज ले आनेवाले महाप्राज्ञ प्रज्ञाचक्षु पंडित श्री सुखलालजी, महावीर के प्रेम, भूपदया, प्रकृतिप्राणीदया, मानवसेवा, विश्वकरुणा को अपने जीवन में उतारनेवाले रवीन्द्रनाथ के अंतेवासी गुरुदयाल मल्लिकजी, आनंदघनजी के आतम-रंग-प्रदाता-पदों के द्वारा पदस्थ-ध्यान की ओर अग्रसर करानेवाले आचार्य श्री भुवनरत्नसूरिजी, तंबूर पर भक्तिसंगीत-मस्ती सिखानेवाले बालकोबाजी एवं सितार पर नादसंगीत शिक्षादाता नादानंद बापूरावजी, फिर "नादानंद", "शब्दानंद" से भी पार "आत्मानंद" का दर्शन करानेवाली ('अन्यलिंगी सिध्धवत्' होकर भी) और महावीर की आत्म- तत्त्व चेतना एवं चिन्तना को चिरंतन बनानेवाली अज्ञात ज्ञानयोगिनी चिन्नम्मा माता; महावीरवत् अनेक गुप्त-तपस्याएँ, प्राणीकरुणा एवं महावीर वत् उपसर्गों-परिषहों बीच आत्मध्यानधारा को अखंड रखकर, आतमभावना भक्ति की प्रसन्न-मस्ती जगाकर, देहभान को स्वयं भूलने अवं सर्व को भुलानेछुड़ानेवाली, "प्रसिध्धि-निस्पृही-निष्कामी" "जगत्माता" आत्मज्ञा धनदेवीजी; महावीर की आत्मभाव-चेतना-ऊर्जा को अपने जीवन में आत्मसात् कर उनके ही निर्वाणस्थान पावापुरी जलमंदिर पर आत्मसमाधिमय देहत्याग करनेवाली साध्वी रत्ना सरलाजी और महावीर के अंतरस्थ ध्यान द्वारा कषाय-मुक्त मुक्तिपथ की मार्गदर्शिका बनकर, अपने जीवनयोग के द्वारा आत्मा का देहातीत स्वरूप साक्षात् कर माउन्ट आबु पर विदेहस्थ बननेवाली विदुषी दीदी विमलाजी-कित कितने नाम लें ? सूची अधूरी ही रहती है ! इन सर्व में हमारे इस जीवन पर सर्वाधिक साक्षात् प्रभाव डालने वाले और महावीर चेतना को अधिकाधिक प्रवाहित एवं पुष्पित करने वाले प्रेरणादाता और ही थे। वर्तमानकाल में महावीर के सर्व साधना-गुणों को अपने जीवन में उतारनेवाले, जीवन जीने की महावीरवत् ही संपूर्ण साधना-पर्युपासना करने वाले, महावीर-बोध को अधिकारिक रूप से स्वयं आत्मसात् कर व्यक्त करने वाले ये दो सत्पुरुष-सद्गुरु हमें प्राप्त हुए यह हमारा परम सौभाग्य, परम | | (13)
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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