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________________ 3rd Proof Dt. 19-7-2018 59 "जो बेटा, गरीबी दूर करवा स्वदेशी अपनाववुं पडशे. ते माटे पहेलां तारे य कांतता शीखवुं पड़शे, ने भिखारीने व शीखववुं पड़शे बोल, करीश ?" • महासैनिक • (देख विटिया गरीबी दूर करने हेतु स्वदेशी अपनाना पड़ेगा उस हेतु प्रथम तुम्हें भी कांतना सीखना होगा और भिखारी को भी कांतना सीखाना होगा । बोल करेगी न ? ) ' "हा बापू ! जरूर करीश" (हां बापू ! अवश्य करूंगी ) बापू खुश हुए आशीर्वाद दिये। पुष्पा रंजन दोनों बड़ी प्रभावित होकर घर लौटीं कांतना सीखा ओर कुछ दिनों में खदर के वस्त्र भी पहनना शुरु कर दिया । क्या, कैसा जादुई प्रभाव बापू के वचनों और गरीबी हटाने के उपायों का ! एक नया सत्य । अपने अध्यापकों स्वजनों का प्रार्थना सभा में आना एक दिन पूज्य बापू की सायं प्रार्थना सभा में अपने विद्यालयीन अध्यापकों का आगमन हुआ । हमारे रविवार पेठ पूना के आर.सी.एम. गुजराती हाईस्कूल के पू. प्राचार्य श्री दादावाले साहब, पू. अध्यापक श्री लालजी गोहिल साहब ( दोनों चुस्त गांधीवादी, खद्दरधारी) जो कि दोनों ही तेरे प्रति सदा अनुग्रह वात्सल्य रखते थे, एवं संस्कृत के अध्यापक श्री कोपरकरजी, प्रसन्न मृदु चित्रकला अध्यापक श्री नगरकरजी आदि पूज्य बापू के दर्शनार्थं पधारे एवं प्रार्थनासभा में बिराजे। श्री दादावाले साहब अपने श्वेत खादी के कोट- पतलुन में एवं श्री गोहिल साहब खादी के झुब्बा-धोती में बड़े ही शोभित दिखते थे और सामने अर्थ दीवार पार की घाट पर प्रशांत मुद्रा में प्रार्थना लीन मौन विराजित पूज्य बापू को देख देखकर बड़े ही प्रसन्न हो रहे थे। प्रार्थना पूर्ण होने पर हम दोनों स्कूली - स्वयंसेवक उनके समक्ष अपना हरिजन फंड पात्र लेकर खड़े हो गए खुश होकर उन सभी ने हमें पात्र में पैसे भी दिए और यह हरिजन फंड भी हमें एकत्रित करते हुए देखकर कृतार्थ होकर आशीर्वाद भी दिए । वैसे ही दूसरे दिन शाम को हमारे पूज्य स्वजन - परिजन भी पधारे - जन्म से ही श्रीमद्-पदों की लोरी सुनाने और समझाने वाले पूज्य माता-पिता, उपकारक अग्रज पू. चंदुभाई, नन्हा क्रान्तिकार अनुज चि. कीर्ति एवं अन्य परिवारजन । सभी पूज्य बापू के दर्शन पाकर धन्य हुए और हमें उनकी सेवा का लाभ पाते देखकर कृतकृत्य । अपने स्वजनों को यहाँ देखकर हम प्रसन्न हो रहे थे तब हमें प्रश्न उठता था कि पूज्य बापू को अपने कस्तुरबा महादेव भाई आदि खोये हुए स्वजन याद आते होंगे या नहीं ? - । 1945 अंत एवं 1946 के प्रारम्भ के वे दिन, गतिशील भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम पडाव के महत्त्व के दिन थे अपनी थोड़ी सी अस्वस्थ शरीरावस्था होते हुए भी बापू आझादीप्राप्ति की अनेक गतिविधियाँ और चर्चा-चिंतनों-विचारणाओं में निरंतर बड़े ही सक्रिय थे । हम बराबर अवलोकन करते रहते थे कि वे कितनी सजगता दक्षतापूर्वक अन्य सारे नेताओं एवं आगंतुकों से बातचीतों में, मिटिंगों में व्यस्त रहते थे। आचार्य नरेन्द्र देव, जे.पी., पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार (59)
SR No.032329
Book TitlePuna Me15 Din Bapu Ke Sath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages16
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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