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________________ उस ऊंचाई के चार भाग करें, उसमें पौन (3/4) भाग का गला, सवा भाग का आमलसार के गोले का उदय, एक भाग की चंद्रिका और एक भागकी आमल सारिका करें। आमल सार कलश की स्थापना विधि आमलसार कलश को शिखर पर स्थापित कर उसमें रेशम की शय्या के साथ चंदन का पलंग रखें, उस पर कनकपुरुष (सुवर्ण का प्रासादपुरुष) रखें और पास में घी से भरा हुआ श्रेष्ठ कलश रखें। यह क्रिया शुभ दिन को आमलसार को शिखर पर चढ़ाने के बाद करें। आमलसार किस वस्तु का बनवायें? पत्थर, काष्ठ अथवा ईंट - इनमें से जिस जिस वस्तु का प्रासाद बना हुआ हो, उस उस वस्तु का आमलसार कलश बनवाना चाहिये। अर्थात् प्रासाद पत्थर का बना हुआ हो तो आमलसार भी पत्थर का, लकड़े का बना हुआ हो तो आमलसार भी लकड़े का और ईट का बना हुआ हो तो आमलसार भी ईट का बनवाना चाहिये। परंतु प्रतिष्ठा हो जाने के बाद अपनी शक्ति अनुसार सुवर्णसे अथवा रत्नसेजड़ा जा सकता है। शुकनाश का मान छज्जे से शिखर के कंधे तक की ऊंचाई के इक्कीस भाग करें, उसमें से नव, दस, ग्यारह, बारह अथवा तेरह भाग समान (प्रमाण) उदय में शुकनाश बनायें। शुकनाश के उदय से आधा शुकनाश का विस्तार करें। इस शुकनाश को प्रासाद के ललाट त्रिक का तिलक माना जाता है। उस पर सिंह रखें, वह मंडप के कलश के उदय के बराबर (समकक्ष) रखें, अर्थात् मंडप के कलश की ऊंचाई अधिकन रखें। "समरांगण सूत्रधार" में भी कहा है कि, शुकनाश के ऊंचाई से मंडप की ऊंचाई अधिक न रखें। ___ "प्रासादमंडन' में भी कहा है कि, मंडप के कलश की ऊंचाई शुकनाश के बराबर अथवा नीची (अल्प, कम) रखना श्रेष्ठ है और अधिक रखना अच्छा नहीं है। मंदिर के काम में काष्ठ किस प्रकार के उपयोग में लें? प्रासाद, कलश, ध्वजादंड और मर्कटी (ध्वजांदड की पाटली) ये सारे एक ही जाति के लकड़े के बनवाये जाये तो सुखकारक है। साग, केगर, शीशम, खेर, अंजन और महुड़ा इन वृक्षों के काष्ठ प्रासाद आदि बनवाने के लिये शुभदायक हैं। जैन वास्तुसार जन-जन का उजनवा 74
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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