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________________ * जिन-प्रासाद * भूमि-खात गहराई : कूर्मशिला : शिला स्थापन क्रम सर्वगुणदोष वाले गृह के लक्षण एवं सर्वगुणदोषयुक्त प्रतिमा के लक्षण कथन के बाद अब केवल संक्षेप में जिनप्रासाद (मंदिर) निर्मित करने की विधि: प्रासाद-मंदिर बनवाने की भूमि का पाया वहाँ तक गहरा खोदें जब तक पानी अथवा पथ्थर न आये। फिर उस (नीव) पाये के मध्यभाग में कूर्मशिला स्थापित करें। और आठों दिशा में आठ खुरशिला स्थापित करें। और बाद में उसके ऊपर सूत्रविधि करें। कूर्मशिला का प्रमाण 'पासाद मंडन' आदि ग्रंथों में जो कथित है उससे जान लें। कूर्मशिला सुवर्ण अथवा चांदी की बनवायें और उसे पंचामृत से स्नान कराने के बाद स्थापित करें। कूर्मशिला (सुवर्ण की अथवा रौप्य · चांदी) का स्वरुप (विश्वकर्माकृत "क्षीरार्णव" ग्रंथ के आधार पर) कूर्मशिला के नव भाग करें, उसके प्रत्येक भाग पर पूर्वदक्षिण आदि दिशा के सृष्टिक्रम से पानी की लहर, मछली, मेंढ़क, मगर, ग्रास, कलश, सर्प और शंख इन आठ दिशाओं के भागों में और मध्य भाग में कूर्म (कछुआ) बनायें। कूर्मशिला स्थापित करने के बाद उसके ऊपर से एक रिक्त (-खाली, खोखला) तांबे की नली देव के सिंहासन तक रखा जाता है उसे प्रासाद की नाभि कहा जाता है। कूर्मशिला को प्रथम मध्य में स्थापित कर फिर ओसार में (चारों ओर) नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता, अजिता, अपराजिता, शुक्ला, सौभागिनी और धरणी ये नव खुरशिला, कूर्मशिला को प्रदक्षिणा करती हुई पूर्वादि सृष्टिक्रम से स्थापित करें। (कुछ आधुनिक सोमपुरा जन धरणीशिला को ही कूर्मशिला कहते हैं। नंदा आदि आठ खुरशिलाओं के ऊपर अनुक्रम से वज्र, शक्ति, दंड, तलवार, नागपाश, ध्वजा, गदा और त्रिशुल ये दिग्पालों के शस्त्र बनवाने चाहिये। नववीं धरणी शिला के ऊपर विष्णु का चक्र बनवाना चाहिए। शिला स्थापन का क्रम प्रथम मध्य में सुवर्ण अथवा चांदी की कूर्मशिला स्थापित कर, फिर आठ खुरशिलाएँ ईशान कोण और अग्निकोण के अनुक्रम से सृष्टिक्रम में स्थापित करें। ये प्रत्येक शिला स्थापित करते समय गीत वाजिंत्र का मांगलिक ध्वनि करें। जन-जन का उठावाल जैन वास्तुसार
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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