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________________ पंचतीर्थी का स्वरुप दोनों पखाड़े में जहाँ चामरधारी बनवाने का कहा गया है उस स्थान पर काउसग्ग ध्यानयुक्त दोनों प्रतिमा तथा छत्रवटे में जहां बांसुरी और वीणा को धारण करनेवाले लिखे हैं, उन दोनों स्थानोंपर पद्मासनयुक्त बैठी हुई जिनमूर्ति बनायें। इस प्रकार चार मूर्ति और एक मूलनायक की मूर्ति - ये पांच मूर्ति हो तो उसे 'पंचतीर्थी' कहते हैं। उसके भाग भी पहले बताये अनुसार करें। अर्थात् चामरधारी के भाग में काउसग्ग ध्यानयुक्त मूर्ति के तथा वांसली और वीणाधर के भाग में पद्मासनवाली मूर्ति के भाग करें । पूजनीय और अपूजनीय मूर्ति का लक्षण जो प्रतिमा एकसो वर्ष पूर्व उत्तम पुरुषों द्वारा स्थापित की गई हो, वह प्रतिमा विकलांग (कुरुप ) हो तो भी पूजने योग्य है । उस प्रतिमा की पूजा का फल निष्फल नहीं जाता । मुख, नाक, आंख, नाभि और कमर इतने अंगों में से कोई अंग खंडित हो जाय तो वह मूर्ति मूलनायक रूप में स्थापित हो तो उसका त्याग करें, परंतु आभरण, वस्त्र, परिकर चिह्न और आयुध इतने में से किसी का भंग हो जाय तो वह मूर्ति पूजा के योग्य मानी जाती है । धातु (सुवर्ण, चांदी, पितल आदि) की अथवा लेप (चूना, ईंट, मिट्टी, चित्रामण आदि) की प्रतिमा अगर कुरुप (बेडोल ) अथवा अंगहीन हो तो वह मूर्ति दूसरी बार बनाई जा सकती है। परंतु काष्ठ, रत्न अथवा पत्थर की मूर्ति खंडित हो जाय या कुरुप हो तो वह दूसरी बार कभी भी बनवाई जा नहीं सकती । धातु की और ईंट, चूना, मिट्टी, चित्रामण आदि लेपमय की प्रतिमा अगर विकलांग हो अथवा वह खंडित हो जाय तो वह प्रतिमा दूसरी बार संस्कार करने योग्य है, अर्थात् उसी मूर्ति को दूसरी बार सुधारकर बनाई जा सकती है। परंतु काष्ठ या पाषाण की प्रतिमा खंडित हो जाय तो वह मूर्ति दूसरी बार सुधारी या बनवाई जा नहीं सकती। प्रतिष्ठा होने के बाद किसी भी मूर्ति का संस्कार नहीं होता । कदाचित् कारणवश संस्कार करने की आवश्यकता पड़े तो उस मूर्ति की दूसरी वार, पहले की गई विधि अनुसार प्रतिष्ठा करवानी चाहिये। कहा है कि प्रतिष्ठा होने के बाद जिस मूर्ति का संस्कार करना पड़े, तोल करना पड़े, दुष्टमनुष्य का स्पर्श हो जाय, परीक्षा करनी पड़े अथवा चोर चोरी कर जाय, इत्यादि कारणों से उस मूर्ति की दूसरी बार प्रतिष्ठा करनी चाहिये । घर मंदिर में पूजने योग्य मूर्तियों का स्वरुप प्रतिमा पाषाण की, लेप की, काष्ठ की दांत की तथा चित्रामण की हो अथवा परिकर रहित हो तथा ग्यारह अंगुल से अधिक ऊंची हो तो वह प्रतिमा घर में रखकर जन-जन का वास्तुसार 67
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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