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________________ अर्थात् 1. कपाल • चार अंगुल 2. नासिका • पांच अंगुल 3. मुख • चार अंगुल 4. गर्दन • तीन अंगुल 5. छाती - बारह अंगुल 6. नाभि बारह अंगुल 7. नाभि सेगुह्य तक - बारह अंगुल और 8. जानु • चार अंगुल इस प्रकार बैठी हुई -पद्मासनस्थ-प्रतिमा का मान-प्रमाण जानें। यह श्वेताम्बर आम्नाय की जिन प्रतिमा का अंगमान प्रमाण है। दिगम्बर जिनमूर्ति का स्वरुप दिगंबराचार्य श्री वसुनंदिकृत "प्रतिष्ठा सार" में दर्शित है तदनुसार जानें। परिकर का स्वरुप सिंहासन (परिकर) की लंबी प्रतिमा के विस्तार से डेढ़ गुनी (1.5) करें, सिंहासन की गादी का उदय पाव (1/4) भाग से करें। परिकर की गादी में हाथी आदि रुपनव अथवा सात बनवाने चाहिये। (गादी में सात रुप बनवाने हों तो उनमें चामरधारी बनाते नहीं है। उसके भाग - चौदह चौदह भाग के यक्ष-यक्षिणी, बारह बारह भाग के दो सिंह, बारह बारह भाग के दो हाथी और बीच में चक्रधरी देवी आठ भाग - इस प्रकार सात रुप बनवायें।) परिकर की गादी में एक ओर यक्ष और दूसरी ओर यक्षिणी अर्थात् गादी पर जो मूर्ति बिराजमान हो उसके शासन देव (यक्ष) भगवान की दायीं (जिमणी) ओर एवं यक्षिणी बायीं ओर बनवायें। और दो सिंह, दो हाथी, दो चामर धारक इंद्र एवं मध्य में चक्रधरी देवी के रुप बनवायें। उसमें चौदह चौदह भाग के दोनों यक्ष और यक्षिणी, बारह बारह भाग के दोनों सिंह, दस दस भाग के दोनों हाथी, तीन तीन भाग के दोनों चामरधारी इन्द्र एवं मध्य में चक्रधरादेवी छह भाग की बनवायें। इस प्रकार कुल 84 (चोर्यासी) भाग सिंहासन की गादी की लंबाई जाने। सिंहासन के मध्यभाग में जो चक्रधरी देवी है, उसे गरुड़ का वाहन (सवारी) है। (चक्रधरी की चार भुजाओं में ऊपर की दोनों भुजाएँ चक्र, नीचे की जमणी (दक्षिण) भुजा वरदान और बायी भुजा बीहोरा युक्त है। इस चक्रधरी देवी के नीचे एक धर्मचक्र बनायें और धर्मचक्र की दोनों ओर एक एक सुंदर हरिन (हिरन) बनवायें। गादी के मध्यभाग में जिनेश्वर भगवान का चिह्न बनवायें। जैन वास्तुसार 65
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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