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________________ शुभ रेखाएँ पाषाण (अथवा काष्ठ) में नंद्यावर्त्त, शेषनाग, घोड़ा, श्रीवत्स, कछुआ, शंख, स्वस्तिक, हाथी, गाय, वृषभ, इंद्र, चंद्र, सूर्य, छत्र, माला, ध्वजा, शिवलिंग, तोरण, हरिण, मंदिर, कमल, वज, गरुड़ और महादेव की जटा इत्यादि आकारवाली रेखा हो तो शुभदायक जाने । रेखा प्रतिमा के किनकिन स्थानों पर नहीं होनी चाहिये वह वसुनंदी प्रतिष्ठासार में दर्शाया है । * जिन प्रतिमा प्रतिमा - पाषाण पर श्यामरंगादि रेखा हृदय, मस्तक, कपाल, दोनों कंधे, दोनों कान, मुख, पेट, पृष्ठ भाग, दोनों हाथ और दोनों पैर इत्यादि प्रतिमा - अवयवों में श्याम आदि रंग की रेखा हो तो उस प्रतिमा का पंडितजन अवश्य त्याग करें। इन के अतिरिक्त अन्य अवयवों पर ऐसी रेखा को मध्यम समझें। और खराब चीर फाड़ (छेद) आदि दूषणों से रहित स्वच्छ, चिकनी, ठंडी ऐसे अपने वर्णवाली रेखा हो तो वह दोषपूर्ण नहीं है । रत्नजाति एवं सुवर्ण - चांदी - ताम्र प्रतिमा चंद्रकांत और सूर्यकांत आदि प्रत्येक रत्न जाति की प्रतिमा को सर्व शुभ गुणों से युक्त समझें । सुवर्ण, चांदी और ताम्बा इन धातुओं की प्रतिमा श्रेष्ठ है, परंतु कांसा - सीसाकलाइ इन धातुओं की एवं मिश्रधातु (कांसा, आदि) की प्रतिमाएँ बनवाने का निषेध है। (कुछ आचार्य पित्तल की प्रतिमा बनवाने का कहते हैं ।) काष्ठ - प्रतिमा - पाषाण प्रतिमा चैत्यालय में काष्ठ की प्रतिमा बनवानी हो तो श्रीपर्णी, चंदन, बेलवृक्ष, कदंब, लाल चंदन, पियाल, उंबरा और कवचित् शिशम इन वृक्षों के काष्ठ प्रतिमा बनवाने के लिये उत्तम हैं और अन्य सभी वर्जित हैं । उपर्युक्त वृक्षों में जो शाखा प्रतिमा बनवाने योग्य हो, दोषों से रहित हो और उत्तम भूमि में अधिष्ठित हो उसे पसंद करके लें । अपवित्र स्थान में उत्पन्न हुए, चीर, मसे अथवा गांठ आदि दोषयुक्त पत्थर अथवा काष्ठ को प्रतिमा बनवाने के काम में न लें। परंतु दोषरहित, मजबूत, सफेद, पीला, लाल, कृष्ण और हरे वर्ण का पत्थर, प्रतिमा के लिये लायें । जन-जन का वास्तुसार 63
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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