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________________ ग्रंथ है, जिसकी हिंदी-गुजरातीअनुवाद सह आवृत्तियाँ समय समय पर प्रकाशित होती रहीं हैं। प्रस्तुत प्रकाशन जयपुर निवासी पंडित भगवानचंद जैन द्वारा किया गया गुजराती अनुवाद है। यह ग्रंथ अप्राप्य था तथा उसकी आवश्यकता प्रतीत हो रही थी। प्रकाशन ट्रस्ट की ओर से इस ग्रंथ का प्रकाशन आवकार्य है। सुकृत सहयोगी की ज्ञानभक्ति अनुमोदनीय है। - आचार्य विजय जयंत सेन सूरि, "मधुकर" आणंद, गुजरात, वैशाख शुक्ल वि.सं.20 46 (ई.स. 1989) जनजन का वास्तुपंच महाभूत भी प्रत्यक्ष रवि-शशिवत् " प्रत्यक्ष है रविवचंद्र, प्रत्यक्ष है वायु, अग्नि और पानी, प्रत्यक्ष है भू-देवी (धरती), प्रत्यक्ष है सकल विश्व, सुनरे 'वेमा' !" - तेलुगु कवि वेमना (17 वीं शती) जब पंच महाभूत प्रत्यक्ष हैं, सभी प्राणियों के आधाररुप हैं, तब उनका प्रभाव भी प्रत्यक्ष है। उनका यह प्राकृतिक, सहज प्रभाव ही वास्तुविज्ञान का आधार है। वास्तु पुरुष का ध्यान" वास्तुदेव नमस्तेऽस्तु भूशय्या निरत प्रभो मद्गृहान् धन धान्यादीन् समृद्धिं कुरु संपदां। महामेरुगिरिस्सर्वदपानमालयो यथा तद्वद्बलादि देवान् मम गेहे स्थिरो भव॥" (हे वास्तुदेव! तुम्हें नमस्कार है। तुम सदा भूमि पर शयन करते हो। तुम हमारे गृहों को धनधान्यादि से एवम् संपदा से समृद्ध बनाओ। जैसे महा मेरु गिरि सर्व देवताओं का आलय है वैसे ही ब्रह्म आदि देव मेरे गृह में स्थिर रहें, ऐसे आशीर्वाद दो।) - (संकलित) जन-जन का उ61वा जैन वास्तुसार
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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