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________________ अलिंद हो तो यह 'त्रिपुर' घर है। शांतिद घर के पीछे और दाहिनी तरफ एक एक अलिंद हो तथा आगे दो अलिंद हो तो इसे 'सुंदर' घर कहेंगे। वर्धमान घर के पीछे और दाहिनी तरफ एक एक अलिंद हो तथा द्वार के आगे दो अलिंद हो तो यह 'नील' घर कहलायेगा । कुक्कुट घर के पीछे और दाहिनी ओर एक एक अलिंद हो तथा आगे दो अलिंद हो तो यह 'कुटिल' घर कहलाता है । दो शालावाले घर के पीछे दाहिनी और बांई ओर एक एक अलिंद हो तथा आगे दो अलिंद हो ऐसे घर का द्वार अगर उत्तर में हो तो ऐसे घर को 'शाश्वत' घर कहा जायेगा । यह सब मनुष्यों के लिये शांतिदाता है। इस घर का द्वार अगर पूर्व दिशा में हो तो यह घर 'शास्त्रद', दक्षिण में हो तो 'शील' और पश्चिम में हो तो 'कोटर' कहलाता है । दो शालावाले घर की दाहिनी एवं बांइ तरफ एक एक अलिंद हो और आगे दो अलिंद हो तथा शाला (कमरों) के मध्य में स्तंभ हो ऐसे घर का द्वार अगर उत्तर में हो तो यह 'सौम्य' घर कहलायेगा, पूर्व दिशा में हो तो 'सुभद्र', दक्षिण दिशा में हो तो 'भद्रमान' और पश्चिम दिशा में हो तो 'क्रूर' घर कहलायेगा । दो शालावाले घर के आगे तीन अलिंद हो और बाकी की तीनों दिशाओं में एक एक अलिंद हो तथा स्तंभ पट्ट सहित हो, ऐसे घर का द्वार अगर उत्तर दिशा में हो तो यह ‘श्रीधर' नामक घर है। ऐसे घर का द्वार अगर पूर्व दिशा में हो तो 'सर्वकामद', दक्षिण में हो तो 'पुष्टिद' तथा पश्चिम में हो तो 'कीर्तिविनाश' घर कहलाते हैं । जिस दो शालावाले घर की तीनों दिशाओं में दो दो अलिंद और आगे भी स्तंभयुक्त दो अलिंद हो तथा अलिंद के आगे खिड़कियाँ वाला मंडप हो ऐसे घर का मुख यदि पूर्व दिशा में हो तो वह 'श्रीनिवास', दक्षिण में हो तो 'श्रीशोभ' और पश्चिम में हो तो‘कीर्तिशोभन' घर कहलाता है । जिस दो शालावाले घर के अग्रभाग में तीन भद्रयुक्त अलिंद हो, शेष पूर्ववत् अर्थात् तीनों दिशाओं में दो दो गुंजारी स्तंभसहित हो तथा अलिंद के आगे खिड़की वाले मंडप हो ऐसे घर का द्वार अगर उत्तर दिशा में हो तो यह घर 'युग्मश्रीधर ' कहलाता है । यह घर अति मंगलदायक और समृद्धिओं का निवास होता है। इस घर का मुख अगर पूर्व दिशा में हो तो 'बहुलाभ' दक्षिण में हो तो 'लक्ष्मीनिवास' और पश्चिम दिशा में हो तो 'कुपित्त' घर कहलाता है । दो शालावाले घर के मुख के आगे अगर दो अलिंद और जालीवाले मंडप हों, पीछे की ओर एक तथा दाहिनी ओर दो अलिंद हो और दीवारें स्तंभयुक्त हो ऐसे घर का द्वार अगर उत्तर दिशा में हो तो यह घर 'उद्योत' घर हैं और यह घन का निवासस्थान होता है। इस घर का द्वार अगर पूर्व दिशा में हो तो यह 'बहुतेज' दक्षिण में हो तो 'सुतेज' और पश्चिम में हो तो 'कलहावह' घर है । जैन वास्तुसार: 39
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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