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________________ * शेषनागचक्र * पूर्व ईशान | सो मं बु गु शु श मं बु गु शुश र सो IA AN दक्षिण गु शु श र सो मं बु गु | शार | सो मं बु | गु शु शा। بھی اور ان वायव्य पश्चिम नैऋत्य इस शेषनागचक्र को बनाने की विधि इस प्रकार है : मकान आदि बनाना हो उस भूमि में ठीक समचोरस चौंसठ कोष्ठक बनायें। प्रत्येक कोष्ठक में रविवार आदि सातों वार लिखें और अंतिम कोष्ठक में प्रथम कोष्ठक का वार लिखें। अब इसमें नाग की आकृति इस प्रकार बनायें कि प्रत्येक शनिवार और मंगलवार के कोष्ठक में वह स्पर्श करती हुई दिखाई पड़े। जहाँ जहाँ नाग की आकृति दिखाई पड़े अर्थात् जहाँ-जहाँ शनिवार और मंगलवार का कोष्ठक हो वहाँ वहाँ खात न करें। नागमुख जानने के लिये मुहूर्त चिंतामणि में बताया गया है कि - देवालय का आरंभ करते समय राह (नाग) का मुख मीन, मेष और वृषभ राशि का सूर्य हो तब ईशान कोण में; मिथुन, कर्क और सिंह राशि का सूर्य हो, तब वायु कोण में; कन्या, तुला और वृश्चिक का सूर्य हो तब नैऋत्य कोण में तथा धन, मकर और कुंभ राशि का सूर्य हो तब अग्नि कोण में रहता है। ___घर का आरंभ करते समय राहु का मुख सिंह, कन्या और तुला राशि के सूर्य में ईशान कोण में, वृश्चिक, धन और मकर राशि के सूर्य में वायव्य कोण में; कुंभ, मीन जैन वास्तुसार 20
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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