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________________ संनिष्ठ। वस्तुपाल - तेजपाल - जगडुशाहादि वत् सर्वभाव से समर्पित, सद्गुरु, आज्ञाधारक, सर्व संघ सहयोगी सन्मानदाता, साधर्मिक स्वामीवत्सल, 'सर्वसंगपरित्याग' -कामी। निवासी सर्वजन कैसे हों ? परम विनयी, परम विनम्र, देवगुरु आज्ञाधारक - परंतु अपने उपकारक गुरु एवं अन्यों के बीच विभेद नहीं - स्नेह सन्मान सामंजस्य बढ़ानेवाले। संपन्न को न गुरुताग्रंथी या मद-अहंकार हो, न विपन्नों को लघुताग्रंथी या दीनभाव। सभी में एक स्वमान भरी खुमारी हो, मस्ती हो, साधर्मिक-स्नेह-परस्ती हो, एक दूसरे की उन्नति में सहभागिता - प्रसन्नता - अनुमोदन हो, निंदा या ईर्ष्यादि कतई नहीं। पूर्ण निर्व्यसनी सप्त व्यसनत्यागी, अल्पसंतोषी, जिनपूजाधारी, जीवन हो। सभी की सेवा सुश्रुषा, विनय व्यवहारादि समग्र श्रावकगुणों से युक्त हो। अन्य धर्मीजनों - अन्य समाजों पर भी अपना जिनधर्म-प्रभाव छोड़ने वाला जीवन व्यवहार हो। सर्वोदयी, पक्षातीत, जिसका राजनैतिक अभिमत अहिंसा - अनेकांत पोषक हो। सर्वोपयोगी वास्तुग्राम की परिकल्पना - सर्वोदय तीर्थ इस ग्रंथ में 'जिनाराधक वास्तुग्राम' की प्रस्तुत की गई नूतन परिकल्पना अनेक धर्मों, अनेक साधनामार्गों, अनेक रूपों में अपनी अपनी आवश्यकतानुसार कार्यान्वित की जा सकती है। सर्व साधना-दर्शनों, सर्व सामान्य जन-स्वरूपों, सर्व-धर्म समन्वय अभिगमों में शुद्धाचरण एवं अध्यात्म की नींव पर विज्ञान को जोड़ते हुए प्रकृति के पंच महाभूतों का एक सुंदर विनियोग ऐसे सर्वोदय तीर्थवास्तुग्राम में किया जा सकता है। ऐसे वास्तुग्राम अलग-अलग संकुलों के रूप में स्थान स्थान, गाँव गाँव, शहर शहर के बाहर सर्व-प्रदूषण-रहित वास्तु-परीक्षित स्वतंत्र भूखंडों पर निर्मित किये जा सकते हैं - वास्तुविज्ञान के निसर्ग-नियमों के साथ, उन्मुक्त नैसर्गिक वातावरण में, जो कि शरीर के साथ मन-आत्मा को भी स्वास्थ्य एवं ऊर्ध्वाकरण प्रदान करते हों। ऐसे प्रकृति-पल्लवित शांत-प्रशांत 'निसर्गधाम-वास्तुग्राम' धरती पर सात्त्विक स्वर्ग की झलक दे सकते हैं। अनेकों में से कुछ दृष्टांतरूप प्रशांत, प्रेरक वास्तु आधारित निर्माणों-स्थानों में क्या आपने प्रशम आत्मस्वरूप में प्रशांत, ध्यानस्थ, उत्तर-मुख एवं नीचे विंध्यगिरितलपर जलाशययुक्त श्रवणबेलगोल की विराटकाय बाहुबली प्रतिमा को जैन वास्तुसार 96 96
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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