SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेखांक : 2 जिनाराधक वास्तुग्राम एक परिकल्पना * वर्तमान की वास्तविकता : भविष्य की संभावना एवं परिकल्पना प्रा. प्रतापकुमार ज. टोलिया कैसा, कहाँ हो ऐसा जिनाराधक वास्तुग्राम ? * जिनाज्ञा की परिपालनापूर्ण जिनाराधना की प्रसन्न अनुपालनामय सर्व समग्र निराडंबर पूजक किसी गच्छसंप्रदाय एवं जैनार्थ, किन्तु जिनप्रतिमा धनदाता - आधिपत्य विहीन । · * प्रदूषणरहित प्रकृति बीच, ध्यान- जिनालय सहित, 'विदिशा' वास्तुस्थित, स्वयं के नीति न्यायमय, द्रव्योपार्जित ( न्यायसम्पन्न वैभव युक्त) निर्माण, पूर्ण वास्तु पूर्व - उत्तर ईशान जलाशय युक्त । * प्रायः तीर्थस्थान निकट, प्रशांत ग्रामप्रदेश अथवा वनप्रांतर में सूर्यप्रकाश - शुद्धवायु - शुद्धजल - उन्मुक्त आकाशादि पंचप्रकृति संपदामय । लघु कुटीर, मध्यम आवास, विशाल भवन सभी वास्तु आधारित । जिनालय - ध्यानालय - ग्रंथालय - योगालय - प्राकृतिक चिकित्सालय - "संमिलन” सभा भवन युक्त । * न अधिक नगर निकट, न अधिक दूर; नगरस्थ आवास छोटे; 'निसर्गनीऽम्' - तरुतल् विद्यासत्र, सभाएँ : शांतिनिकेतन शैली में प्रकृति बीच । - * आत्माराधन - धर्माराधन एवं आय साधन दोनों की क्षमता युक्त; ध्यान योगोपासना जैन योगमार्गानुसार : आत्मध्यानमय जिन प्रतिमा ध्यानमय । - - जन-जन का * आय - साधन : अल्पारंभी व्यापार, लघु ग्रामोद्योग, कम्प्युटरादि मय, कृषि- विवेकमय; 'गोकुल' गोपालन, गायों का बाहुल्य, गृहोद्योग । बाग-1 - * साहित्य, संगीत, कलादि ऋषभानुशासन की अनेक जीवनविद्याओं युक्त आत्म केन्द्रस्थ जिनप्रणीत आत्मदर्शन, आत्मज्ञानाधारित सर्वदर्शन समन्वय अहिंसा + विज्ञान समन्वय युक्त । - * संगीत केवल भारतीय 'सप्तसंगीत' युक्त - पॉप रोकादि पूर्ण निषिद्ध। टी.वी. साधन प्रायः घर घर में नहीं, एक केन्द्रीय नियंत्रित स्थान संचालित - विवेकपूर्ण सीमित चयन | 94
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy