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________________ प्रदान करनेवाली जैन परम्परा की ओर से ठोस धरातल पर वास्तविक व्यावहारिक जीवन सही ढंग से, सुसंवादी ढंग से, सकारात्मक ढंग से जीने के, आवासीय जीवन की सुख-शांति समृद्धि-निरामयता पाने के उपक्रम में यह बड़ा महत्त्वपूर्ण प्रदान होगा । दुःखीजनों का दुःखनिवारण एवं सर्व का कल्याण आख़िर यह विश्व कल्याणकामी श्रमण संस्कृति - परम्परा यही तो चाहती है न कि - तो भारत की दूसरी परम्परा, वैदिक ब्राह्मण परम्परा भी तो यही मंगलकामना करती है कि - और “शिवमस्तु सर्व जगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं सर्वत्र सुखी भवन्तु लोकाः ॥" " सर्वेऽत्र सुखिनो सन्तु, सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग् भवेत् ॥” “ कामये दुःखतप्तानां प्राणीनामार्त्तिनाशनम् ॥” तो इन दुःखतप्तों के, मनुष्यों के दुःखो के एक प्रधान कारण ऐसे अज्ञान का, गलत गृहवास्तु सम्बन्धित अज्ञान का, जड़मूल से ही निर्मूलन करने के लिये यह उपक्रम उपयोगी - उपकारक - उपादेय सिद्ध होगा । * सर्वांगीण, समग्रताभरी दृष्टि से लिखने को प्रवृत्त, प्रयत्नशील ऐसे इस पंक्तिलेखक का आधार है - वर्षों का स्वयं का अध्ययन - अनुचिंतन, गुरुगम एवं विभिन्न ग्रंथ । इन आधारों पर संपन्न अपने स्वानुभव प्रयोगों के पश्चात् यह वास्तु- निष्कर्ष-विमर्श प्रस्तुत किया जा रहा है । अध्ययन- इस उपक्रम में अन्य ग्रंथों के प्रदानों को जोड़ना अभी शेष और सुरक्षित रखते हुए, हम जैन वास्तुशास्त्र की प्राचीन परंपरा के एक वैज्ञानिक सिद्धांतग्रंथ पर आयेंगे। यह उल्लेखयोग्य, अध्ययन - अनुशीलन योग्य उपकारक ग्रंथ है "वास्तुसार प्रकरण" अथवा "वास्तुप्रकरणसार"। करनाल - दिल्ली के ठक्कर चंद्र सेठ के विद्वान सुपुत्र परमजैन श्री ठक्कर फेरु ने विक्रम संवत् 1372 के वर्ष में (आज से सात सौ वर्षों पूर्व) अलाउद्दीन बादशाह के समय में दिल्ली शहर में रहकर इस ग्रंथ की • जन-जन का * " राग-द्वेष - अज्ञान ये, कर्म-ग्रंथि भव ग्राह । जासों तास निवृत्ति हो, रत्नत्रयी शिवराह ॥” (आत्मसिद्धिशास्त्र हिन्दी अनुवाद श्री सहजानंदघनजी) "राग, द्वेष, अज्ञान ए मुख्य कर्मनी ग्रंथ । थाय निवृत्ति जेहथी, ते ज मोक्षनो पंथ ॥" (100: मूल गूजराती : श्रीमद् राजचन्द्रजी) वास्तुसार IX
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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