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________________ तीन भाग का कलश, एक भाग का अंतरपत्र, तीन भाग का केवाल और चार भाग का पुष्पकंठ बनायें । पुष्पकंठ से जाड्य कुंभ का निर्गम आठ भाग का करें । पूर्वादि दिशाओं में सृष्टि क्रम से दिक्पालों को जगती के कोने में स्थापित करें । जगती में गढ़ मंडप आदि की रचना जगती किला (गढ़) द्वारा सुशोभित करें। गढ़ की चारों दिशाओं में एक एक द्वार मंडप सहित बनवायें। पानी निकलने के लिये मगर के मुखवाली परनालियाँ रखें, दरवाजे के आगे तोरण और सोपान (पर्गाथये) बनवायें । बलाणक (मंडप) के द्वार के आगे सोपान और दोनों ओर हाथी की आकृति करें / बनवायें । दरवाजें के आगे स्तंभ, तोरण करें वह मध्य पद के अनुसार करें । तोरण के दोनों स्तंभों का मध्य विस्तार गर्भगृह अनुसार रखें "बलाणक (द्वार मंडप की दीवार गर्भगृह की दीवार के अनुसार करें। उन दोनों के मध्य में तोरण, स्तंभ बनवायें । द्वारमंडप की पीठ प्रासाद की पीठ जैसी करें। वह रूपों के द्वारा बहुत सुशोभित करें। मंडप में देव के हिंडोले, तोरण आदि अनेक प्रकार के तोरण बनवायें । प्रासाद के समीप मंडप आदि का क्रम छह प्रासाद कमल (गर्भगृह) के आगे गूढ़ मंडप, गूढ़ मंडप के आगे छह चोकी, चोकी के आगे रंगमंडप और रंगमंडप के आगे तोरण युक्त बलाणक (दरवाजे के ऊपर का मंडप ) इस प्रकार मंडप का क्रम रखें। प्रासाद की दायीं और बायीं ओर शोभा मंडप और गवाक्षयुक्त शाला बनवायें, जिस में गांधर्व देव गीत, नृत्य और विनोद करते हों । मंडप का मान प्रासाद के विस्तार के बराबर नाप का तथा दुगनें, डेढ़गुने अथवा पौने दो गुने नाप का मंडप बनवाना चाहिये। मंडप के उदय के सोपान तीन अथवा पांच बनवायें। मंडप में चोकियाँ बनवायें | स्तंभ का उदय और उस के थरों का मान मंडप की गोलाई के आधे भाग का स्तंभ का उदय करें। जो उदय आये उसके नव भाग करें। उसमें एक भाग की कुंभी, पांच भाग का स्तंभ, पौने भाग की भरणी, सवा भाग की शिरावटी और एक भाग का पाट करें। जन-जन का 82
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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