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________________ इत्यादि अनुक्रम से प्रत्येक हाथ से एक एक अंगुल बढ़ाते हुए पचास हाथ के प्रासाद में 82 अंगुल की बैठी मूर्ति रखें। इस प्रमाण की मूर्ति में, मूर्ति का इक्कीसवाँ भाग बढ़ाकर बनवायें तोज्येष्ठमान की और इक्कीसवाँ भाग घटाकर बनवायें तो मध्यममान की मूर्ति जानें। तथा बीसवा भाग घटाकर बनवायें तो कनिष्ठमान की मूर्ति जानें। प्रासाद के द्वार के हिसाब से मूर्ति का मान वसुनंदि कृत "प्रतिष्ठासार" में इस प्रकार बतलाया गया है : प्रासाद के द्वार के आठ भाग करें, उसमें से ऊपर का आठवा भाग घटाकर बाकी के सात भाग के तीन भाग करें, उसमें एक भाग का पबासन और दो भाग की मूर्ति बनवायें, यह खड़ी मूर्ति जानें। बैठी मूर्ति रखनी हो तो दो भाग का पबासन और एक भाग की मूर्ति बनवाये। प्रतिमा का दृष्टिस्थान प्रासाद के मुख्य द्वार का जो उंबर (देहरा) और ओतरंग के बीचमें के उदय के दश भाग करें। उसमें नीचे के प्रथम भाग में महादेव की दृष्टि रखें। दूसरे भाग में शिवशक्ति (पार्वती) की दृष्टि रखें। तीसरे भाग में शेषशायी की दृष्टि, चौथे भाग में लक्ष्मीनारायण की दृष्टि, पांचवे भाग में वराह अवतार की दृष्टि, छठवे भाग में लेप और चित्रामयी मूर्ति की दृष्टि रखें। सातवे भाग में शासनदेव (जिनेश्वरदेव के यक्ष और यक्षिणी) की दृष्टि, इस सातवें भाग के दस भाग करके उनमें से सातवे भाग पर वीतराग (जिनेश्वर देव) की दृष्टि, आठवे भाग में चंडदेवी और भैरव की दृष्टि, नववे भाग में छत्र और चामर धारण करने वाले देवों की दृष्टि रखें। ऊपर के दसवें भाग में किसी भी देव की दृष्टि न रखें, क्योंकि वहाँ यक्ष, गांधर्व और राक्षसों की दृष्टि है। सर्व देवों की दृष्टि का स्थान द्वार के नीचे के भाग से गिनें। दूसरे प्रकार से जिनेश्वर का दृष्टि स्थान कतिपय आचार्यों का मत है कि द्वार के उदय के आठ भाग करें, उसमें नीचे से गिनती करते हुए ऊपर का जो सातवाँ भाग उसके फिर से आठ भाग करें, उसका सातवाँ भाग गजांश उसमें अरिहंत देव की दृष्टि रखें। अर्थात द्वार के चोसठ भाग कर के पचपनवें भाग पर वीतराग देव की दृष्टि रखें। इस प्रकार गृह मंदिर - घरदेरासर में भी अरिहंत की दृष्टि रखें कि जिससे लक्ष्मी आदि की वृद्धि हो। "प्रासादमंडन' में भी कहा है कि - द्वार की उंचाई के आठ भाग करके ऊपर का आठवां भाग छोड़ दें। फिर ऊपर का जो सातवाँ भाग उस के फिर से आठ भाग करके जैन वास्तुसार 79
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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