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________________ सौन्दर्य में लीन होता है उन्हीं क्षणों में हम . - सचमुच जीवित होते हैं। सो, जितने ही क्षण हम सौन्दर्य के बीच बिताएँगे क्षयधर्मी काल से मात्र उतने ही क्षण छीन पाएँगे। पारुल की रचनाओं को पढ़ने से प्रतीत होता है कि वह अपनी अंतः चेतना में क्षयधर्मी काल से जीवन के बहुमूल्य क्षण छीनने में सतत प्रयत्नशील रही और खोज खोज कर लाती रही अनमोल मणियाँ । दृष्टव्य है निजघर में प्रकाश' का यह अंश वास्तव में अंधेरा तो बाहर की तड़क भड़क वाली दुनिया में है, भीतरी दुनिया में तो प्रकाश ही प्रकाश है साहस किया वहाँ जाने का कि उस प्रकाश को पा लिया भीतर के सागर में डूबने का जहाँ प्रयास हुआ है प्राप्त हुए हैं वहाँ अनमोल मोती। शायद पारुल के अवचेतन मानस में अपने अल्प जीवन का अहसास रहा होगा - उसका पूर्वाभास । उसकी सभी रचनाओं में यत्र तत्र यह पूर्वाभास प्रकट हुआ है घूमते बादल, उड़ते पंछी, खड़े पेड़ - सभी का प्रतिबिम्ब जल में परन्तु उस जल-तट पर खड़ी हुई अपने असंग स्वरूप में एकाकी खोई हुई बाहर से शून्य अशेष बनी हुई इस अस्तित्व-विहीन का प्रतिबिम्ब कहीं नहीं था। स्वयं को अस्तित्वविहीन कहना उसकी अवचेतन - तटस्थित मानसिक स्थिति का स्पष्ट संकेत देता है । एक दूसरी कविता में वह और भी मुखर हुई है - शाम का धुंधलका और उसपर भी हावी होने का प्रयास करते बादल नीड़ को लौटते थके हारे पंछी और नदी के तट पर खड़े वृक्ष पारुल-प्रसून
SR No.032322
Book TitleParul Prasun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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