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________________ पिता-पुत्री की काव्यमय अभिव्यक्ति - पारुल - प्रसून ‘मंगल मंदिर खोलो’ की स्मृति दिलानेवाला 'पारुल - प्रसून' श्री प्रताप कुमार टोलिया का भावपूर्ण आविष्कार है। जीवन में काव्य, संगीत तथा अध्यात्म की त्रिवेणी साधना कर रहे प्रतापकुमार यहाँ एक पिता के रूप में प्रकट होते हैं । अत्यंत कम उम्र में चिर विदा लेनेवाली अपनी पुत्री की विदा के कारण व्याकुल ऐसे उनके हृदय का यहाँ सरल, सहज आविष्कार है । यहाँ अपने आर्द्र संवेदनों के साथ साथ पारुल के लिखे हुए ग्यारह काव्यों का एक संपुट तथा उसकी एक कहानी एवं लेख - 'पारुल - परालोक के आलोक में' संकलित हैं। साथ में पिता के व्यथा से आर्द्र हृदय के संवेदन भी शब्द बद्ध हैं - 'पारुल स्मृति' शीर्षक से । पारुल के काव्यों में उसकी संवेदनशीलता के साथ आध्यात्मिक दृष्टि भी परिलक्षित होती है । पारुल ने अपने 'नादान' मन के सीमाहीन एकाकीपन को दूर करने के लिए काफी प्रयास किया है । फिर भी वह दूर न होने पर करुण विवशता व्यक्त करते हुए वह लिखती है पारुल की वेदना उस की विशेषता के कारण मर्मस्पर्शी बन गई है । इस 'पारुल प्रसून' शीर्षक में केवल पिता की ही नहीं, माता की भावना भी अपने आप व्यक्त हो गई है । 'प्रसून' शब्द में - जिसका अर्थ है पुष्प - प्रताप का 'प्र' तथा सुमित्रा का 'सु' आ जाता । उस पुष्प की दिव्य सुवास की इस संग्रह में अत्र तत्र सर्वत्र अनुभूति पाठकों को होती रहेगी । उसने कहा है: 'नादान मन मेरे ! अपने आप से भी कोई, बच पाया है कभी?' 'मैं काल के द्वारा कहाँ कुचली गई हूँ? मैं तो स्वकाल में संचरण कर रही हूँ । मैं काल की गति से परे हो गई हूँ ।' मंगल मंदिर के द्वार भी इसी प्रकार खुलते होंगे ना? पारुल के इस उत्तर में आत्मा की अमरता का आध्यात्मिक सत्य छुपा हुआ है । मनुष्य अगर इसे प्राप्त कर सके तो ?! डॉ. गीता परीख (गुजराती से अनूदित) अहमदाबाद, २१.११.०५ ४ पारुल - प्रसून -
SR No.032322
Book TitleParul Prasun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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