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________________ ऐसी परम विभूति माँ के चरणों में एवं ऐसी पावन तीर्थभूमिपर खुले आकाश के नीचे बैठकर कई उच्च विचार आते हैं और गायब हो जाते हैं .... । फिर अचानक वेदना की टीस भरा एक विचार आता है कि जल्द ही इस स्वर्ग-सी दुनिया को छोड़कर अपने व्यवहारों की खोखली दुनिया में चले जाना पड़ेगा . । जी उदास होता है । जाना नहीं चाहती । काश ! (शायद आपनी इच्छाओं से ही सृजित ) ऐसी दुनिया ही न बनाई गई होती !! हम्पी में, वात्सल्यमयी माँ के चरणों में जो अपनापन, जो प्यार मिलता है, वह इसमें कहाँ ? वहाँ के लोग जैसे इन्हें जानते ही न हों... . फिर भी जिम्मेदारियाँ हमें खींचती हैं... जाने पर बाध्य करती हैं... विवश होकर जाने के लिए चल देती हूँ तो यह संकल्प करके कि - "फिर भी यहाँ वापस आऊँगी, जल्द ही !"... घनरात्रि में ये विचार शामिल हो जाते हैं ... और मन पर फिर से शान्ति छा जाती है ... (कापीराइट लेख) नोट: - इस लेख को लिखने के कुछ वर्ष बाद, लेखिका कु. पारुल की दिव्यप्रेम की प्यासी आत्मा, इस 'खोखली दुनिया' को छोड़कर (२८.८.८८ को बस ऐक्सीडैन्ट को निमित्त बनाकर) चली गई ... शायद अपने सूक्ष्म आत्मरूप से इसी आत्मज्ञा माँ के चरणों में विचरने ! ! - प्र. . उनकी दूसरी सुपुत्री पारुल के विषय में प्रकाशित पुस्तक 'Profiles of Parul' देखने योग्य है। प्रो. | टोलिया की इस प्रतिभाशाली पुत्री पारुल का जन्म ३१ दिसम्बर, १९६१ के दिन अमरेली में हुआ था । पारुल का शैशव, उसकी विविध बुद्धिशक्तियों का विकास, कला और धर्म की ओर की अभिमुखता, संगीत और | पत्रकारिता के क्षेत्र में उसकी सिद्धियाँ, इत्यादि का आलेख इस पुस्तक में मिलता है। पारुल एक उच्च आत्मा के रूप में सर्वत्र सुगंध प्रसारित कर गई । २८ अगस्त १९८८ के दिन बेंगलोर में रास्ता पार करते हुए सृजित | दुर्घटना में उसकी असमय करुण मृत्यु हुई। पुस्तक में उसके जीवन की तवारीख और अंजलि लेख दिए गए हैं। उनमें पंडित रविशंकर की और श्री कान्तिलाल परीख की 'Parul a serene soul' स्वर्गस्थ की कला और धर्म के क्षेत्रों में संप्राप्तियों का सुंदर आलेख प्रस्तुत करते हैं। निकटवर्ती समग्र सृष्टि को पारुल सात्त्विक स्नेह के आश्लेष में बांध लेती थी । न केवल मनुष्यों के प्रति, अपितु पशु-पक्षी सहित समग्र सृष्टि के प्रति उस का समभाव और प्रेम विस्तरित हुए थे। उसका चेतोविस्तार विरल कहा जाएगा। समग्र पुस्तक में से पारुल की | आत्मा की जो तस्वीर उभरती है वह आदर उत्पन्न करनेवाली है। काल की गति ऐसी कि यह पुष्प पूर्ण रूप से खिलता जा रहा था, तब ही वह मुरझा गया । पुस्तक में दी गई तस्वीरें एक व्यक्ति के २७ वर्ष के आयुष्य को और उसकी प्रगति को तादृश खड़ी करतीं हैं। पुस्तिका के पठन के पश्चात् पाठक की आँखें भी आँसुओं से भीग जाती हैं । प्रभु इस उदात्त आत्मा को चिर शान्ति प्रदान करो । 'वर्धमान भारती' गुजरात से दूर रहते हुए भी संस्कार प्रसार का ही कार्य कर रही है वह समाजोपयोगी और लोकोपकारक होकर अभिनन्दनीय है । 'त्रिवेणी' लोकसत्ता- जनसत्ता ३२ - डॉ. रमणलाल जोशी (सम्पादक, 'उद्देश' ) अहमदाबाद २२-३-१९९२ पारुल - प्रसून
SR No.032322
Book TitleParul Prasun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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