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________________ "जल के अथाह गांभीर्य में, तट पर खड़ी थी मैं - अकेली, असंग परन्तु मेरा प्रतिबिम्ब कहीं नहीं था!'' मेड़ता की भक्त मीरा मेवाड़ छोड़कर, द्वारिका जाकर अपने गिरिधर-गोपाल में लीन होकर समा गई थी - अपने भजनों में अपना प्रतिबिम्ब छोड़ती हुई। प्रयाग की करुणात्मा महादेवी - आधुनिक मीरा, अपना महिला-विश्वविद्यालय छोड़कर, अपने दरिद्र-नारायण में समा गई थी - अपने छायागीतों में अपना प्रतिबिम्ब छोड़ती हुई। ___ यह निराली मीरा अपनी इर्दगिर्द की उपेक्षाभरी दुनिया छोड़कर, अपनी ‘अंतस् द्वारिका में' संचरण कर, अपने भीतरी नारायण की शरण जाकर, अपनी अज्ञात, अनंत, नीरव, प्रशांत दुनिया में लीन हो गई - उसका प्रतिबिम्ब कहीं नहीं था। पारुल-प्रसून
SR No.032322
Book TitleParul Prasun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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